शेयर बाज़ार के निवेश में पक्का कुछ नहीं होता, केवल प्रायिकता होती है। यहां जो पक्के रिटर्न की बात करते हैं, वे आपको उल्लू बनाते हैं। पक्का तो सरकारी बांड या एफडी पर मिलनेवाला ब्याज होता है। शेयर बाज़ार का कोई भरोसा नहीं कि कहां तक उठेगा या गिरेगा। इसलिए निवेश में ‘पक्का’ और ‘प्रायिकता’ के बीच हमेशा संतुलन बनाकर चलें। 100 रुपए हैं तो पहले 25 बांड या एफडी में और 25 शेयर बाज़ार में। बाकीऔरऔर भी

कुछ ऐसा बताएं कि दस का सौ और फिर सौ का हज़ार हो जाए। क्या शेयर बाज़ार में ऐसा मुमकिन है? यकीनन। अडानी ग्रीन एनर्जी का शेयर 17 मार्च को 112.70 पर था। 24 नवंबर को 1220 तक उठ गया और अब भी 1160 पर है। साल भर में 100 का 1000! लेकिन शेयर बाज़ार का पूरा सच यह है कि चंद चमकते जुगनुओं के पीछे भागनेवाले निवेशक ऐसी गहरी खाई में गिरते हैं कि कभी निकलऔरऔर भी

अच्छी कंपनी। शेयर 1550 के आसपास। इक्विटी सलाहकार फर्म कहती है कि तीन साल में यह 1460 रुपए तक पहुंच जाएगा। मगर इसे तब खरीदना, जब 36.45% गिरकर 985 तक पहुंच जाए। आपको सालाना 14% का चक्रवृद्धि रिटर्न मिल जाएगा। क्या बेवकूफी है! कंपनी अच्छी है तो उसका शेयर तेज़ी के मौजूदा बाज़ार में इतना गिरेगा क्यों? फिर, 1550 के शेयर के तीन साल में 1460 तक पहुंचने की सलाह का क्या तुक? लेकिन इक्विटी रिसर्च कीऔरऔर भी

भारतीय शेयर बाज़ार की बागडोर विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के हाथों में चली गई है। केयर रेटिंग्स की रिपोर्ट के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में मध्य-फरवरी तक उन्होंने भारत में 3380 करोड़ डॉलर (करीब 2.49 लाख करोड़ रुपए) डाले हैं। उनका 35.60% निवेश वित्तीय सेवा कंपनियों और इसमें से भी 56.82% निवेश बैंकों में है। पिछले कुछ महीनों में इस क्षेत्र के शेयर सबसे ज्यादा बढ़ते रहे हैं। रिपोर्ट कहती है, एफपीआई तीन महीने में 100 करोड़औरऔर भी

किसी भी देश में उसकी सरकार के बांडों को मूलधन और ब्याज अदायगी के मामले में सबसे सुरक्षित या दूसरे शब्दों में रिस्क-फ्री माना जाता हैं। अभी तक अपने यहां आम निवेशक के लिए इनमें निवेश करना बड़े झंझट का काम था। लेकिन अब रिजर्व बैंक यह झंझट खत्म करने जा रहा है। उसने ‘रिटेल डायरेक्ट’ सेवा शुरू करने की पेशकश की है। इसके अंतर्गत रिटेल निवेशक रिजर्व बैंक में गिल्ट एकाउंट खोलकर सीधे सरकारी बांड खरीदऔरऔर भी

सिद्धांततः कंपनी के शेयरों के भाव उसके शुद्ध लाभ की भावी संभावित वृद्धि पर आधारित होते हैं। यह भी सच है कि आमतौर पर भारतीय निवेशक हर साल 15% ज्यादा शुद्ध लाभ कमानेवाली कंपनियों के शेयर प्रति शेयर मुनाफे (ईपीएस) से 20-22 गुना भाव या पी/ई अनुपात पर खरीदता रहा है। इस समय बाज़ार (निफ्टी) का पी/ई अनुपात 42 तक जा चुका है। शेयर का इतना गुना भाव तभी वाजिब है जब आगामी सालों में कंपनी काऔरऔर भी

अपने यहां आम लोगों में शेयर बाज़ार से जुड़ी इक्विटी या निवेश की नहीं, बल्कि लालच की संस्कृति छाई है। उनकी इसी लालच की टपकती लार का दोहन करने के लिए अधिकांश म्यूचुअल फंडों से लेकर ब्रोकर, निवेश सलाहकर व यूलिप स्कीमें ला रहीं बीमा कंपनियां तक लगी हुई है। लोग टिप्स खोजते हैं, शेयर बाज़ार में लिस्टेड अच्छा बिजनेस करनेवाली कंपनियां नहीं। नहीं समझते कि 60% निवेश लार्जकैप, 30% निवेश मिडकैप, 15% निवेश स्मॉलकैप और 5%औरऔर भी

वित्त वर्ष 2019-20 में अर्थव्यवस्था मात्र 4% बढ़ी। यह 11 सालों की न्यूनतम दर है। बीता वित्त वर्ष 2020-21 कोरोना की भेंट चढ़ गया। नतीजतन, अर्थव्यवस्था 7% सिकुड़ सकती है। फिर भी पांच साल में 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था और नए वित्त वर्ष में 11% विकास दर का सब्ज़बाग! राजनीति में ऐसी झांकी चलती है, मगर अर्थनीति में नहीं। 11% नहीं, 12% बढ़ जाए, तब भी नए साल में अर्थव्यवस्था 2019-20 की तुलना में 4.16% ही बढेगी, जबकि बीच का एक साल स्वाहा। अब तथास्तु में आज की कंपनी…और भी

कस्टमाइजेशन का ज़माना है। उत्पाद व सेवाओं को ग्राहक की खास बुनावट व ज़रूरतों के हिसाब से ढाला जाता है। शेयर बाज़ार की ट्रेडिंग व निवेश में भी बिना हायतौबा मचाए कमाना है तो हमें अपने माफिक स्टॉक्स व कंपनियां चुननी होंगी। निवेश का पक्का फॉर्मूला है कि जिस कंपनी का धंधा, उसका बिजनेस मॉडल हमें अच्छी तरह समझ में आ रहा हो, उसी में धन लगाना चाहिए। किसी की नकल नहीं करनी चाहिए क्योंकि नकल मेंऔरऔर भी

भविष्य कोई नहीं देख सकता। कंपनी अच्छी चल रही है। लेकिन तीन-चार साल बाद क्या हाल होगा, पता नहीं। सारी गणनाएं व अनुमान फेल हो सकते हैं। ट्रैक-रिकॉर्ड को परखने के बाद ही हम कंपनी चुनते हैं। फिर भी स्मॉलकैप कंपनी स्किपर का शेयर तीन साल में 210 से 70 तक लुढ़क चुका है, जबकि रत्नमणि मेटल्स चार साल में 455 से 1585 तक उछल गया है। इस बीच लार्जकैप कंपनी लार्सन एंड टुब्रो सात साल मेंऔरऔर भी