अर्थव्यवस्था की हालत डांवाडोल हो, सरकार के दावों पर यकीन न रह गया हो, विदेशी निवेशक भागे जा रहे हों, तमाम कंपनियों का धंधा मंदा चल रहा हो, शेयर बाज़ार गिरा जा रहा हो, तब ऐसा क्या पैमाना है जिसे निवेश लायक कंपनियां छांटने का आधार बनाया जा सकता है? यह है नियोजित पूंजी पर रिटर्न या RoCE, जिसे कंपनी के ब्याज व टैक्स से पहले के लाभ (EBIT) को नियोजित पूंजी से भाग देकर निकाला जाताऔरऔर भी

अर्थव्यवस्था की जो स्थिति अभी है और अगले एकाध साल में जो हो सकती है, यह सारी जानकारी शेयर बाज़ार हर समय जज्ब करके चलता है। इसलिए किसी को भ्रम नहीं होना चाहिए कि वह अर्थव्यवस्था को जानकर शेयर बाज़ार का सफल निवेशक बन सकता है। हां, इसका उल्टा ज़रूर सही है कि शेयर बाजार प्रचार के शोर को भेदकर अर्थव्यवस्था का सच्चा हाल बयां कर देता है। जैसे, इस समय निफ्टी-50 सूचकांक में शामिल चार कंपनियोंऔरऔर भी

शेयर बाज़ार तो चक्रों में चलता है। लेकिन हमें निवेश की अपनी सोच व रणनीति को हमेशा संतुलित रखना होता है। भावना में बहकर लिए गए फैसले निवेश की सफलता के सबसे बड़े दुश्मन होते हैं। भीड़ की भेड़चाल में नहीं फंसना है। न कभी लालच में आकर निवेश करना है, न ही डरकर अफरातफरी में बेचकर निकल जाना है। निवेश से रिटर्न कमाने के तीन मुख्य रास्ते हैं। एक, उधार देकर उस पर ब्याज कमाना। देशऔरऔर भी

शेयरों में निवेश करो और भूल जाओ। यह मंत्र उनके लिए है जिनके पास इफरात धन है। लेकिन जो निवेशक अपनी भावी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए शेयरों में अपनी बचत लगाने का जोखिम उठाते हैं, उनके लिए निवेश करो और भूल जाओ की यह सोच विशुद्ध विलासिता है। उन्हें ज़रूरत पड़ने या लक्ष्य पूरा होने पर शेयरों को बेचकर मुनाफा निकालते रहना चाहिए। इससे वे किसी वजह से अचानक शेयरों के गिरने के नुकसान सेऔरऔर भी

सालों-साल से बनाया जा रहा 24-25 स्टॉक्स का जो पोर्टफोलियो सितंबर तक 60-62% फायदा दिखा रहा था, दो महीने में ही वहां फायदा 30-32% तक सिमट जाए तो किसी का भी दुखी हो जाना स्वाभाविक है। कमज़ोर कंपनियों के शेयर गिर जाएं तो समझ में आता है। लेकिन अच्छी-खासी मजबूत कंपनियों के शेयर घाटा देने लग जाएं तो धैर्यवान व समझदार निवेशक भी मायूस हो जाता है और खुद को असहाय महसूस करता है। लेकिन इतिहास साक्षीऔरऔर भी

आपने अगर रिसर्च के आधार शेयर बाज़ार में निवेश करने की समझ और आदत बना ली तो बहुत अच्छा। तब धीरे-धीरे आपको कंपनियों और उनके धंधे की समझ बढ़ती जाएगी। तब आप उनके मूल्यांकन का गणित भी समझने लगेंगे। शुरू में ही आपको ईपीएस और पी/ई का महत्व पता लगने लगेगा। यह भी थोड़े समय में आप जान जाएंगे कि बैंकिंग व फाइनेंस कंपनियों में ईपीएस और पी/ई नहीं, बल्कि प्रति शेयर बुक वैल्यू (बीपीएस) और पी/बीऔरऔर भी

शेयर बाज़ार के निवेशक को न तो परम आशावादी होना चाहिए और न ही चरम निराशावादी। उसे दरअसल घनघोर यथार्थवादी होना चाहिए। आम सामाजिक व राजनीतिक जीवन में जिसे अवसरवादी होना भी कहते हैं। जैसी बहे बयार, पीठ तब तैसी दीजे। लेकिन अवसरवादी होने में नकारात्मकता है, जबकि यथार्थवादी होना सकारात्मक सोच है। जो जैसा है, उसे वैसा ही देखना और स्वीकार करना। शेयर बाज़ार उठता है, गिरता है। फिर उठ जाता है। यह उसका स्वभाव है।औरऔर भी

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के निकलने से अपना शेयर बाज़ार डूब रहा है या डुबकी लगा रहा है? जवाब है कि बाज़ार कतई डूब नहीं रहा। वो केवल डुबकी लगा रहा है ताकि फिर और ज़ोर-शोर से ज्यादा ठोस धरातल से उछाल मार सके। यह भी साफ होना चाहिए कि सूचकांकों के गिरने से कंपनियां खुद-ब-खुद सस्ती नहीं हो जातीं और न ही उनके शेयर के भाव घट जाने से उनके बिजनेस और मुनाफे की भावी संभावनाऔरऔर भी

एनएसई का निफ्टी-50 सूचकांक 26 मई 2023 से 26 सितंबर 2024 तक के 16 महीनों में 41.71% छलांग लगाने के बाद पिछले एक महीने में ही 7.76% गिर चुका है। वहीं, एक महीने में चीन का शांघाई कम्पोजिट सूचकांक 9.96% बढ़ चुका है। वजह बड़ी साफ है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) भारतीय शेयर बाज़ार से निवेश निकालकर चीन के शेयर बाजार में लगा रहे हैं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या अपना बाज़ार एफपीआई के निकलने काऔरऔर भी

यूं तो शेयर बाज़ार की दशा-दिशा और अलग-अलग शेयरों के भाव बहुत सारे कारकों से प्रभावित होते हैं। इनमें घरेलू अर्थव्यवस्था से लेकर वैश्विक अर्थव्यवस्था, खासकर अमेरिका व चीन की स्थिति और उनकी मौद्रिक नीति तक शामिल है। साथ ही एक बड़ा कारक यह है कि बाज़ार या शेयर में धन का प्रवाह या निकासी कैसी चल रही है। इधर माना जा रहा है कि भारत से भागने में लगे विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक हमारे केमिकल क्षेत्र मेंऔरऔर भी