भारतीय अर्थव्यवस्था के दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ने का दावा किया जा रहा है। लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि उद्योग का बढ़ना थम-सा गया है। अगस्त में उद्योगों को बैंकों से मिला ऋण बढ़ने के बजाय 0.2% घट गया है। ऐसा दस सालों में पहली बार हुआ है। कंपनियों का धंधा ठहरा हुआ है। मगर शेयर बाज़ार चढ़ा हुआ है। ऐसे में निवेशयोग्य कंपनियां चुनना बड़ी चुनौती है। लेकिन तथास्तु में एक और अच्छी कंपनी…औरऔर भी

बांग्ला में सुमन कबीर का गाना है कि सुख में, दुख में, क्रोध में, शांति में, लड़ाई-झगड़े या अशांति; हर हाल में मैं तुम्हें ही चाहता हूं। कंपनियां भी इसी तरह हर सूरत में बिजनेस के मौके निकाल लेती हैं। मारकाट कोई अच्छी चीज़ नहीं। राजों-महाराजों की लड़ाई का ज़माना लद गया। लेकिन आज भी मुल्कों में लड़ाई होती है। युद्ध के साजोसामान बेचे जाते हैं। जबदस्त बिजनेस है। आज तथास्तु में डिफेंस उद्योग की एक कंपनी…औरऔर भी

हिंदी समाज के ज्यादातर बुद्धिजीवी शेयर बाज़ार को हिकारत की नज़र से देखते हैं। उन्हें नहीं दिखता कि यह समृद्धि में हिस्सा बांटने का बेहद लोकतांत्रिक तरीका है। आम आदमी कंपनी तो नहीं बना सकता। लेकिन वो शेयर बाज़ार के माध्यम से अच्छी से अच्छी कंपनी के मालिकाना में अंश खरीद सकता है। वैसे भी इधर भारत-पाक तनाव ने अच्छी कंपनियों के शेयर थोडा सस्ते कर दिए हैं। तथास्तु में पेश है ऐसी ही एक अच्छी कंपनी…औरऔर भी

इंसान की तरह कंपनी के जीवन में भी उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। असली काबिलियत की परख यह है कि आप झंझावातों से कैसे पार पाते हैं। इसी तरह कंपनियों की राह भी बहुत आसान नहीं होती। उन्हें हालात से जूझकर अपनी लाभप्रदता बनाए रखनी पड़ती है। उन्हें इस क्रम में अपने बिजनेस मॉडल में काटछांट करनी पड़ती है। साथ ही अच्छी कंपनी का ध्यान हमेशा अपने शेयरधारकों पर रहता है। तथास्तु में आज ऐसी ही एक कंपनी…औरऔर भी

जब महंगाई लगातार बढ़ रही हो और मुद्रास्फीति घटने के बावजूद 5-6% की दर से चढ़ रही हो तब वस्तुओं के दाम से लेकर रिटर्न तक को हमें मुद्रास्फीति की दर घटाकर देखना चाहिए। यहीं, टाइम वैल्यू ऑफ मनी या धन के समय मूल्य की अवधारणा काम आती हैं। निवेश में समय और भाव महत्वपूर्ण है। लेकिन भाव को ऊपर-ऊपर नहीं, बल्कि उसके समय मूल्य के आधार पर देखा जाना चाहिए। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

देश की आबादी अभी 132.68 करोड़ है, जबकि शेयर बाज़ार में पंजीकृत निवेशकों की संख्या 3.19 करोड़ है। यानी, 2.4% भारतीय ही शेयरों में निवेश करते हैं। शहरों के गली-मोहल्लों में जिस तरह गरीब से गरीब लोग लॉटरी खेलते दिखते हैं, उससे लगता है कि लॉटरी खेलने वालों की संख्या दस करोड़ तो होगी ही। ध्यान दें कि लॉटरी भविष्य से खिलवाड़ है, जबकि शेयरों में हम भविष्य से खेलते हैं। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

अतीत व वर्तमान के सारे तथ्य जुटा लेने के बावजूद हम अक्सर फैसला नहीं कर पाते क्योंकि भविष्य में क्या होगा, नहीं जानते। जो हुआ नहीं है, उसका पता लगाया भी कैसे जा सकता है! फिर धंधे का प्रबंधन किसी और के हाथों में हो, तब भविष्य आंकने में ज्यादा ही अनिश्चितता है। यही है शेयरों में निवेश का रिस्क। हां, हमें अपने तथ्य व तर्क जरूर सही रखने पड़ते हैं। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

हम जितनी ज्यादा गंभीरता से जितनी ज्यादा संभावनामय कंपनियां आपके निवेश के लिए पेश करते हैं, दूसरा कोई नहीं करता। हमारे दाम का भी कोई जोड़ नहीं। लेकिन उस निवेश को प्रतिफल में बदलना आपके जोखिम उठाने पर निर्भर करता है। कंपनियां कभी-कभी भावी गणना पर खरी नहीं उतरतीं तो उनसे निकलना भी आप पर है। बताते हैं हम, रिस्क उठाकर कमाते हैं आप। कंपनियां भी रिस्क लेकर चमकती हैं। तथास्तु में आज एक ऐसी ही कंपनी…औरऔर भी

बचत व निवेश हम इसीलिए करते हैं ताकि संकट के समय सांसत में न फंस सकें। लेकिन संकट के समय में दो सबसे ज्यादा काम आनेवाली चीजें हैं कैश व साहस। साहस हमारे स्वभाव का हिस्सा है जो प्रतिकूलता से  जूझते हुए स्वाभाविक रूप से आकार लेता है। लेकिन कैश हमें बराबर संभालकर रखना पड़ता है और अधिकांश  निवेश ऐसे माध्यमों में करना चाहिए जिसे हम फौरन कैश में बदल सकें। अब तथास्तु में आज की कंपनी…औरऔर भी

अच्छी कंपनी उतनी ही मेहनत में ज्यादा मूल्य पैदा कर लेती है। विकसित देश वो है जो एकसमान मेहनत व संसाधनों में ज्यादा मूल्य सृजित करता है। साथ ही समान मेहनत के वो ज्यादा दाम देता है। अपने यहां कामगार को ज्यादा वेतन देता है और समाज में ज्यादा सुविधाएं उपलब्ध कराता है। विकास का तब तक कोई मतलब नहीं है, जब तक वो मूल्य नहीं पैदा करता। तथास्तु में विकास व मूल्य-सृजन में लगी एक कंपनी…औरऔर भी