दूर से भगवान
भगवान के भौतिक वजूद के सबसे करीब रहनेवाला पुजारी सबसे बड़ा नास्तिक होता है। वह भगवान की औकात जानता है। जानता है कि दूर के लोगों की आस्था ही भगवान को सत्ता व ताकत देती है। वरना वो किसी का कुछ बना-बिगाड़ नहीं सकता।और भीऔर भी
जमना-टूटना
समाज बार-बार जमकर जड़ होती और टूटकर फिर से बनती सत्ता का नाम है। यथास्थिति बनी रही तो कुशल है। अन्यथा बवाल मच जाता है। नया कुछ करनेवालों को समाज का बहुमत नकारता है। लेकिन अल्पमत को लेकर वही लोग नया समाज बनाते हैं।और भीऔर भी
सत्ता की शरण
दुनिया में हर अच्छी चीज का दुरुपयोग हुआ है। इसके लिए दोषी वो चीज नहीं, बल्कि वे चालबाज इंसान हैं जो अपने हितसाधन की अंधी दौड़ में लगे हैं। इनकी अंधेरगर्दी को रोकने के लिए कानून बनते हैं। पर इनसे बचने के लिए वे सत्ता में आ जाते हैं।और भीऔर भी
सोचना देश के लिए
देश के लिए सोचना आसान है, करना कठिन। सोचने के लिए बस भावना चाहिए, जबकि करने के लिए सही हालात का सच्चा ज्ञान जरूरी है। भावना में सच्चे, ज्ञान में कच्चे रहे तो सत्ता के लिए लार टपकाता कोई समूह हमारा इस्तेमाल कर लेता है।और भीऔर भी
सत्ता और प्रतिभा
यूं तो प्रतिभा और सत्ता में कोई सीधा रिश्ता नहीं। लेकिन अगर आप प्रतिभाहीन है तो सत्ता से इसकी भरपाई कर सकते हैं। सत्ता मिलते ही आपके इर्दगिर्द इतने दुम हिलानेवाले जुट जाएंगे कि आपको कभी भान ही नहीं होगा कि आप में प्रतिभा नहीं है।और भीऔर भी
बेच सके तो बेच
संत हो या संसारी या हो कलाकार, हर कोई बेचने में जुटा है। इसके बिना किसी का गुजारा नहीं। सत्ता का प्रश्रय भी उसे ही मिलता है जिससे सत्ता को चलाने का तुक मिलता है। आज तो भिखारी भी वही सफल है जो अपनी दयनीयता को बेच लेता है।और भीऔर भी
संत और सत्ता
इंसान और विपक्ष का असली चरित्र तभी खुलता है जब उसे सत्ता मिलती है। तभी पता चलता है कि वो कितना संत था और कितना ढोंगी, उसकी बातों में कितनी लफ्फाजी थी और कितनी सच्चाई। संत तो सत्ता पाकर भी सृजनरत रहता है।और भीऔर भी