साल 2010 पब्लिक इश्यू से जुटाई गई राशि के मामले में भारतीय कॉरपोरेट जगत में नया इतिहास बनाकर विदा हो रहा है। लेकिन नया साल 2011 इसको भी मात देने को तैयार दिख रहा है। कैलेंडर वर्ष 2010 में भारतीय कॉरपोरेट जगत ने पब्लिक इश्यू के जरिए 59,523 करोड़ रुपए जुटाए हैं। लेकिन कैलेंडर वर्ष 2011 में अगर सेबी के पास दाखिल निजी कंपनियों के प्रॉस्पेक्टस और सरकारी कंपनियों के विनिवेश को आधार बनाएं तो पब्लिक इश्यूऔरऔर भी

बाजार की हालत दुरुस्त हो चली है और एफआईआई ने अच्छे शेयरों को बटोरना शुरू कर दिया है। मीडिया की सुर्खियां भी दिखाती हैं कि हाउसिंग लोन घोटाले या रिश्वतखोरी का मामला अब धीरे-धीरे सम हो रहा है। हालांकि बाजार के लोगों को अब भी समझ में नहीं आया है कि यह गिरावट एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल) निवेशकों और ऑपरेटरों को ठिकाने लगाने के लिए थी क्योंकि रिटेल ने कोई खास खरीद कर नहीं रखी थी। खरीदऔरऔर भी

बाजार का बहुत तेजी से बढ़ना अच्छा नहीं है तो पंटर भाईलोग शॉर्ट सेलिंग करने लगे। पहले कहा जा रहा था कि बहुत धीमा होना बाजार के लिए बहुत बुरा है और इसलिए शॉर्ट सेलिंग हो रही है। अरे भाई मेरे! आप लोग बाजार को कब समझेंगे? निफ्टी 5800 पर है और सारे के सारे एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) सेंसेक्स में शामिल स्टॉक खरीदने में जुटे हैं क्योंकि ऐसा करना उनकी मजबूरी है। मैं तो कहूंगा किऔरऔर भी

किसी शेयर के बढ़ने या गिरने से निवेशक पर क्या फर्क पड़ता है? क्या टेक्निकल एनालिस्टों के चार्ट चलते हैं या फंडामेंटल ही शेयर का दमखम तय करते हैं? मेरी राय में आखिरकार फंडामेंटल ही काम करते हैं और हकीकत यही है कि बाजार से चार्ट बनते हैं, न कि चार्ज बाजार को बनाते हैं। हमने हीरो होंडा में बिक्री की पहली कॉल 1926 रुपए पर दी और यह स्टॉक अब गिरते-गिरते 1700 रुपए पर आ गयाऔरऔर भी

बीईएमएल सरकार की मिनी-रत्न कंपनी है। रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में है। पहले इसका नाम भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड हुआ करता था। ए ग्रुप की कंपनी है। इधर चर्चा है कि उसे बड़े ऑर्डर मिलनेवाले हैं और सरकार अपनी थोड़ी इक्विटी हिस्सेदारी बेच भी सकती है। हालांकि कंपनी में सरकार की वर्तमान हिस्सेदारी 54.03 फीसदी है। इसलिए वह बहुत बेचेगी तो 3 फीसदी इक्विटी ही बेच सकती है क्योंकि इसमें 51 फीसदी से कम सरकारी हिस्सेदारीऔरऔर भी

बाजार में करेक्शन या गिरावट को लेकर और भी डराने वाली रिपोर्टें जारी की जा रही हैं। ऐसे में पहले से डरे हुए ट्रेडर और निवेशक डिलीवरी आधारित सौदों से बचने लगे हैं और बाजार में शॉर्ट करने के मौके तलाश रहे हैं। लेकिन यह सब रोलओवर की तकलीफ है जिसे हमें झेलना ही पड़ेगा। इसी माहौल में मंदडियों के हमलों के तमाम सिद्धांत फैलाए जा रहे हैं। लेकिन नया सेटलमेंट शुरू होते ही ये सारे सिद्धांतऔरऔर भी

रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति से ज्यादा उम्मीद करने जैसा कुछ था ही नहीं। रेपो दर में चौथाई फीसदी की वृद्धि बाजार की लय को नहीं तोड़ सकती थी। बाजार अब तेजी के दौर में जा पहुंचा है। मजाक बहुत हो चुका है। अभी तक ऑपरेटरों ने रिटेल निवेशकों पर सवारी गांठी है और शेयर भावों को अपने हिसाब से तोड़ा-मरोड़ा है। पहले भारती एयरटेल को डाउनग्रेड किया गया और फिर अपग्रेड। अब मारुति को डाउनग्रेड कियाऔरऔर भी