उस अपशगुन का नाम तो लो!

किसी शेयर के बढ़ने या गिरने से निवेशक पर क्या फर्क पड़ता है? क्या टेक्निकल एनालिस्टों के चार्ट चलते हैं या फंडामेंटल ही शेयर का दमखम तय करते हैं? मेरी राय में आखिरकार फंडामेंटल ही काम करते हैं और हकीकत यही है कि बाजार से चार्ट बनते हैं, न कि चार्ज बाजार को बनाते हैं।

हमने हीरो होंडा में बिक्री की पहली कॉल 1926 रुपए पर दी और यह स्टॉक अब गिरते-गिरते 1700 रुपए पर आ गया है। इसलिए ऐसा नहीं है कि हम हमेशा तेजड़िया रवैया ही अपनाते हैं। हालांकि हम बाजार में लांग या खरीद के पक्ष में हैं और अगली 20 तिमाहियों तक इस पर कायम रहेंगे। इसलिए हम अमूमन खरीद की ही सलाह देते हैं। हमारी एक भी शॉर्ट या बिक्री की कॉल से हमारे 62 हजार सदस्य घबराने लगते हैं और डिलीवरी के स्टॉक भी बेचने लग जाते हैं जैसा कि हम कतई नहीं चाहते।

हीरो होंडा अब फंडामेंटल के आधार पर कमजोर स्टॉक बन गया है। हालांकि अब भी इसमें आउट-परफॉर्म करने की क्षमता है। लेकिन मेरे हिसाब से कंपनी का मूल्य अब केवल 22,000 करोड़ रुपए गया है। इसमें इक्विटी हिस्सेदारी की कोई भी बिक्री इससे अधिक मूल्य पर नहीं हो सकती। इसलिए मेरा मानना है कि मौजूदा बाजार पूंजीकरण पर होंडा की हिस्सेदारी नहीं बिक सकती। नवंबर तक पूरी डील का खुलासा होगा और तब तक इस शेयर को नीचे ही नीचे जाना है। इसलिए अब हम इस स्टॉक में तभी खरीदार बनेंगे, जब यह अपनी तलहटी छू चुका होगा।

इस बीच मारुति का स्टॉक खुद को मजूबत करने में लगा है। फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने एक लेख लिखा है कि कैसे जर्मन कंपनी फॉक्सवागेन कारों के निर्माण के लिए मारुति से हाथ मिलाने की सोच रही है। यह वाकई अच्छी खबर है क्योंकि हमारे पास सूचना है कि फॉक्सवागेन केवल इसी मकसद के लिए जापानी कंपनी सुजुकी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाएगी।

एसएनएल बियरिंग्स का शेयर खंडन-मंडन के बावजूद धीमा पड़ने को तैयार नहीं दिखता। यह बड़ी उड़ान के मुहाने पर है। मूल्यांकन के लिहाज से इस समय एसएनएल कम मूल्य पर उपलब्ध है। हमने इसमें खरीद की सलाह देते हुए 134 रुपए का लक्ष्य रखकर अपनी रिपोर्ट जारी की है। लक्ष्य हमने रिवाज को देखते हुए रखा है, लेकिन इसमें काफी बढ़त की संभावना है। इसमें पहली ब्लॉक डील 127 रुपए के भाव पर होनी है। जब हमने सैंडुर को पकड़ा था, तब उसे कम ही लोग जानते थे। एसएनएल को चिन्हित किया तो वह तो उससे भी कम जानी जानेवाली कंपनी थी। अभी यह दूसरी सैंडुर बनने की प्रक्रिया में है।

एचसीसी बड़ी जानदार कंपनी है। मैं इसे पसंद करता हूं। यह आरजे की भी पसंदीदा है क्योंकि खबरों के मुताबिक उन्होंने कंपनी के लवासा प्रोजेक्ट में बड़ी हिस्सेदारी खरीदी है। लवासा कॉरपोरेशन का ड्राफ्ट रेड हेयरिंग प्रॉस्पेक्टस (डीआरएचपी) दाखिल किया जा चुका है और जल्दी इसका सारा विवरण सबके सामने होगा। अगर लवासा का मूल्यांकन 40,000 करोड़ रुपए रहता है तो इसमें एचसीसी की हिस्सेदारी का मूल्य 26,000 करोड़ रुपए निकलेगा, जबकि अभी एचसीसी का बाजार पूंजीकरण मात्र 3600 करोड़ रुपए है। अगर मेरे पास पर्याप्त धन होता तो मैं तत्काल एचसीसी के एक करोड़ शेयर खरीद लेता और मजे से छुट्टी पर चला जाता क्योंकि कंपनी का यह नया मूल्य 60 दिनों के भीतर बाजार के सामने आनेवाला है। आज इस स्टॉक में लाई गई बनावटी कमजोरी मेरे फायदे में है।

निफ्टी 5577 अंक पर पहुंचकर अब 31 महीनों के शिखर पर है और इसने सारे नामधारी अपशगुनों को धता बता दी है। इसने साबित कर दिया है कि हम इस खेल की गहरी समझ सकते हैं। यह कोई चमत्कार नहीं, बल्कि हम सही केवल इसीलिए साबित हुए हैं क्योंकि हमने तमाम दूसरी चीजों को नजरअंदाज पर अपनी रिसर्च पर भरोसा किया।

कोई भी व्यवसाय निरंतर भक्ति व समर्पण की मांग करता है। यह एक तरह की साधना और इसकी मांग को पूरा करने के लिए हमें अक्सर तमाम दूसरी चीजों की निरंतर उपेक्षा करनी पड़ती है।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ हैलेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)

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