कहां तो विश्लेषक मानकर चल रहे थे कि मई में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक 16 फीसदी बढ़ेगा और कहां असल में यह 11.5 फीसदी ही बढ़ा है। यह पिछले सात महीनों का सबसे निचला स्तर है। लेकिन इन आंकड़ों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए वित्त सचिव अशोक चावला का कहना है कि किसी को भी यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि औद्योगिक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर लंबे समय तक असामान्य दरों पर बढ़ता रहेगा। इसके सामने क्षमता की सीमाएं हैं।औरऔर भी

आरईआई एग्रो के निदेशक बोर्ड ने एक प्रस्ताव पास किया है कि कंपनी में एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशक) निवेश कुल चुकता पूंजी के 75 फीसदी हिस्से तक हो सकता है।  कंपनी से यह सूचना मिलने के बाद रिजर्व बैंक के इसका नोटिफिकेशन जारी कर दिया है। कंपनी जिस उद्योग में है उसमें एफआईआई निवेश की सीमा तय करने का अधिकार कंपनी के निदेशक बोर्ड का होता है। इस अधिसूचना के बाद एफआईआई इक्विटी शेयरों और परिवर्तनीय डिबेंचरोंऔरऔर भी

इस साल के बजट में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने घोषित किया था कि आयकर एक्ट की धारा 80 सी, 80 सीसीसी और 80 सीसीडी के तहत मिलनेवाली कुल एक लाख रुपए की कर-मुक्त आय के ऊपर 20,000 रुपए और बचाने की सुविधा इंफ्रास्ट्रक्चर बांडों में किए गए निवेश पर मिलेगी। अब ये बांड निर्धारित कर दिए गए हैं। वित्त मंत्रालय ने घोषित किया है कि आईएफसीआई, एलआईसी और आईडीएफसी के अलावा उन गैर-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों कीऔरऔर भी

रिजर्व बैंक ने सभी बैंकों और गैर-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों को हिदायत दी है कि वे क्रेडिट कार्ड के कामकाज के बारे में बिना किसी लाग-लपेट के तय दिशानिर्देशों का पालन करें, नहीं तो उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी, जिसमें जुर्माना लगाना भी शामिल है। रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को बाकायदा एक अधिसूचना जारी कर यह निर्देश दिया है। असल में इधर रिजर्व बैंक से लेकर बैंकिंग ओम्बड्समैन के कार्यालयों को क्रेडिट कार्डधारकों से बराबर शिकायतें मिलऔरऔर भी

बेस रेट तो लागू हो गया, लेकिन पुराने होम लोन के ब्याज का क्या होगा? नया होम लोन तो बैंक अपने बेस रेट के हिसाब से देंगे। जो ऋण नवीकरण के लिए आएंगे, उन पर भी बेस रेट की नई प्रणाली लागू होगी। जिन बैंकों ने शुरुआती सालों के लिए 8, 8.25 या 8.50 फीसदी ब्याज दर वाली विशेष स्कीमें पेश की थी, उन्हें और उनके ग्राहकों को कोई परेशानी नहीं है। एसबीआई या एचडीएफसी की तरहऔरऔर भी

अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों को कायदे से कर्ज मिलता रहे, इसके लिए रिजर्व बैंक 1980 के दशक के आखिर-आखिर तक बैंकों द्वारा दिए जानेवाले उधार की मात्रा से लेकर उसकी ब्याज दर तक पर कसकर नियंत्रण रखता था। 1990 में दशक के शुरुआती सालों में वित्तीय क्षेत्र के सुधारों के तहत वाणिज्यक बैंकों की उधार दरों से नियंत्रण हटाने के लिए तमाम कदम उठाए गए। पहला, अप्रैल 1993 में तय ब्याज दरों पर कितना उधार दिया जानाऔरऔर भी

वित्तीय समावेश क्यों महत्वपूर्ण है? सीधी-सी बात कि यह महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि यह बराबरी वाले विकास को लाने और टिकाए रखने की आवश्यक शर्त है। ऐसे बहुत ही कम दृष्टांत हैं जब कोई अर्थव्यवस्था कृषि प्रणाली से निकलकर उत्तर-औद्योगिक आधुनिक समाज तक व्यापक आधारवाले वित्तीय समावेश के बिना पहुंची हो। हम सभी अपने निजी अनुभव से जानते हैं कि आर्थिक अवसरों का गहरा रिश्ता वित्तीय पहुंच से होता है। ऐसी पहुंच खासकर गरीबों के लिए बहुतऔरऔर भी

बढ़ती मुद्रास्फीति ने आखिरकार रिजर्व बैंक को बेचैन कर ही दिया और उसने आज, शुक्रवार को ब्याज दरें बढ़ाकर मांग को घटाने का उपाय कर डाला। रिजर्व बैंक ने तत्काल प्रभाव से रेपो दर (रिजर्व बैंक से सरकारी प्रतिभूतियों के एवज में रकम उधार लेने की ब्याज दर) 5.25 फीसदी से बढ़ाकर 5.50 फीसदी और रिवर्स रेपो दर (रिजर्व बैंक के पास धन जमा कराने पर बैंकों को मिलनेवाली ब्याज दर) 3.75 फीसदी से बढ़ाकर 4 फीसदीऔरऔर भी

मार्च 2009 से मार्च 2010 के बीच भारत पर आईएमएफ (अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष) का कर्ज लगभग छह गुना हो गया है। इस दौरान यह 101.8 करोड़ डॉलर से 493.4 फीसदी बढ़कर 604.1 करोड़ डॉलर हो गया है। लेकिन यह भारत के कुल 26145.4 करोड़ डॉलर के विदेशी ऋण का बहुत मामूली हिस्सा है। हमने इस ऋण का सबसे ज्यादा 27.2 फीसदी हिस्सा (7098.6 करोड़ डॉलर) वाणिज्यिक उधार के रूप में ले रखा है। कुल विदेशी कर्ज में अल्पकालिकऔरऔर भी

पहली जुलाई से बैंकों में लागू होनेवाले बेस रेट के एलान का सिलसिला मंगलवार से शुरू हो गया। देश के सबसे बड़े बैंक, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने घोषित किया है कि उसका बेस रेट 7.5 फीसदी सालाना होगा। इसका मतलब यह हुआ कि कृषि ऋणों के अलावा एसबीआई कोई भी ऋण 7.5 फीसदी के कम ब्याज पर नहीं देगा। एसबीआई के फैसले के बाद दूसरे सभी बैंक आज और कल में अपने बेस की घोषणा करऔरऔर भी