भारतीय रुपया डॉलर और यूरो जैसी विदेशी मुद्राओं के खिलाफ मजबूत होता जा रहा है। पिछले साल मार्च में रुपए की विनिमय दर प्रति डॉलर 50 रुपए के आसपास थी। लेकिन अब यह 45 रुपए के नीचे जाती दिख रही है। यानी जहां पहले एक डॉलर में 50 रुपए मिलते थे, वहीं अब 45 रुपए ही मिलते हैं। इसने अपनी आय का बड़ा हिस्सा विदेश से हासिल करनेवाली आईटी कंपनियों को परेशान कर दिया है क्योंकि डॉलर में आय के समान रहने पर भी उनकी आय भारतीय रुपए में घट जाएगी।
प्रमुख आईटी कंपनी इनफोसिस के एक अधिकारी के मुताबिक रुपया-डॉलर विनिमय दर में 1 फीसदी की कमी से उनके लाभ मार्जिन 40 आधार अंक यानी 0.4 फीसदी घट जाता है। अगर पहले लाभ मार्जिन 12.8 फीसदी था तो विनिमय दर में 1 फीसदी कमी से यह 12.4 फीसदी और 2 फीसदी कमी से 12 फीसदी हो जाएगा। पिछले तीन महीनों में रुपया डॉलर से सापेक्ष 2.39 फीसदी और यूरो के सापेक्ष 3.39 फीसदी मजबूत हुआ है। इसका मतलब है कि इस दौरान आईटी कंपनियों का परिचालन लाभ मार्जिन करीब 1 फीसदी घट जाएगा। खैर, ज्यादातर कंपनियों पर फिलहाल हकीकत में इसका असर कम ही पड़ेगा क्योंकि उन्होंने अपनी डॉलर आय की हेजिंग करेंसी फ्यूचर्स बाजार में कर रखी है।
दूसरी तरफ रुपए की मजबूती ने कपड़ा और चमड़ा निर्यातकों पर दोहरी मार लगा दी है। एक तो पहले ही अमेरिका व यूरोप के बाजारों में मंदी का असर था जिससे कपड़े व चमड़े का निर्यात कारोबार दबाव में चल रहा था। ऊपर से डॉलर व यूरो की कमजोरी ने उससे होनेवाली आमदनी को बिना कुछ किए ही घटा दिया है। अगर निर्यात पहले की तरह 100 डॉलर का ही है, फिर भी उन्हें अब 4500 रुपए ही मिल रहे हैं, जबकि साल भर पहले यह रकम 5000 रुपए बनती थी। दिक्कत यह है कि निर्यातक विदेशी मुद्रा करेंसी सौदौं में दो-तीन साल पहले काफी भुगत चुके हैं। इसलिए वे हेडिंग करने से भय खाते हैं। जहां बड़े निर्यातकों ने अपने 50 फीसदी तक विदेशी ऑर्डर हेज करा रखे हैं, वहीं छोटे व मध्मय स्तर के निर्यातकों ने केवल 15-20 ऑर्डरों की ही हेजिंग कर रखी है।