एवरेस्ट इंडस्ट्रीज लाभ के धंधे में लगी बराबर लाभ कमानेवाली कंपनी है। 1934 में बनी 77 साल पुरानी कंपनी है। बिल्डिंग से जुड़े साजोसामान बनाती रही है। छत व दीवारों से लेकर दरवाजे व फ्लोरिंग तक। फाइबर सीमेंट बोर्ड (एफसीबी) से लेकर प्री-इंजीनियर्ड स्टील बिल्डिंग तक। एस्बेस्टस पर्यावरण के लिए खतरनाक है, विकसित देशों से उसे निकाला गया तो कंपनी ने उसका विकल्प एफसीबी के रूप में पेश कर दिया। घरेलू बाजार के साथ-साथ कंपनी निर्यात भी करती है।
उसकी पांच उत्पादन इकाइयां कटनी (मध्य प्रदेश), पोडानुर-कोयम्बटूर (तमिलनाडु), कोलकाता (पश्चिम बंगाल), नासिक (महाराष्ट्र) और भगवानपुर-रुढ़की (उत्तराखंड) में हैं। उसकी नासिक फैक्टरी में 8 नवंबर से मजदूरों की हड़ताल की सूचना थी। अभी क्या हाल है नहीं पता। 8 नवंबर को इसका शेयर 157.35 रुपए पर बंद हुआ था। उसके बाद लगातार गिर रहा है। कल, 15 नवंबर को इसका दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर बीएसई (कोड – 508906) में 137.80 रुपए और एनएसई (कोड – EVERESTIND) में 138.30 रुपए पर बंद हुआ था। ठीक एक साल पहले 15 नवंबर 2010 को यह शेयर 231 रुपए पर था। इसके बाद 11 फरवरी 2011 को 52 हफ्ते के न्यूनतम स्तर 127.55 रुपए पर जा चुका है।
मजदूरों की हड़ताल किसी भी स्वस्थ औद्योगिक माहौल में चलती रहती है। चलती रहनी चाहिए। आम बात है। तात्कालिक मसला है, सुलझ जाएगा। गौर करने की बात है कंपनी की लाभप्रदता और सतत विकास। ब्रोकरेज फर्म एडेलवाइस के आंकड़ों के अनुसार पिछले तीन सालों में एवरेस्ट इंडस्ट्रीज की बिक्री 36.45 फीसदी और शुद्ध लाभ 69.11 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ा है। अभी सितंबर 2011 की तिमाही में उसकी बिक्री 27.67 फीसदी बढ़कर 184.57 रुपए और शुद्ध लाभ 30.30 फीसदी बढ़कर 6.02 करोड़ रुपए हो गया है। कंपनी का नियोजित पूंजी पर रिटर्न 16.31 फीसदी और इक्विटी (नेटवर्थ) पर रिटर्न 18.57 फीसदी है।
कंपनी का शेयर 138 रुपए के आसपास चल रहा है, जबकि उसकी बुक वैल्यू ही 138.18 रुपए है। कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 25.84 रुपए है और इस तरह उसका शेयर मात्र 5.33 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। इतना कम पी/ई तो उसका फरवरी 2011 में तलहटी पकड़ने पर भी नहीं था। इसका अधिकतम पी/ई अनुपात 30.05 का है जो इसने जून 2008 में हासिल किया था। इसके मद्देनजर आपकी इसकी रेंज का अंदाजा लगा सकते। लेकिन बाजार में भाव को लेकर की गई सारी भविष्यवाणियों का हाल, लग गया तो तीर, नहीं तो तुक्का वाला रहता है। कोई कह नहीं सकता कि साल भर बाद ऊंट किस करवट बैठेगा।
बाकी ज्यादा कुछ नहीं। आप अपनी तरफ से एवरेस्ट इंडस्ट्रीज के बारे में तहकीकात करके ही निवेश का फैसला करें। सबसे मुश्किल काम है होता है सही स्टॉक का चयन और उसमें हम बराबर आपकी मदद कर रहे हैं। आपको जमता नहीं तो आप भारी नोट खर्च करके यह सेवा औरों से ले सकते हैं। लेकिन वहां से भी बस इतनी ही गारंटी है कि आपका अनुभव ‘लग गया तो तीर नहीं तो तुक्का’ का रहेगा।
खैर, एवरेस्ट इंडस्ट्रीज की 15.09 करोड़ रुपए की इक्विटी में पब्लिक का हिस्सा 50.17 फीसदी और प्रवर्तकों का हिस्सा 49.83 फीसदी है। प्रवर्तकों ने अपना कोई शेयर गिरवी नहीं रखा है। कंपनी का ऋण/इक्विटी अनुपात मात्र 0.66 है। उसके 2.10 फीसदी शेयर एफआईआई और 6.78 फीसदी शेयर डीआईआई के पास हैं। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 12,727 है। इसमें से 11,985 (94.17 फीसदी) एक लाख रुपए से कम लगानेवाले छोटे निवेशक हैं जिनके पास कंपनी के कुल 23.53 फीसदी शेयर हैं।
कंपनी में प्रवर्तकों से भिन्न एक फीसदी से ज्यादा इक्विटी रखनेवाले पांच बडे शेयधारक हैं जिनके पास कुल 13.76 फीसदी हिस्सा है। इनमें रिलायंस कैपिटल (6.74 फीसदी), एवरेस्ट स्टाफ वेलफेयर ट्रस्ट (2.89 फीसदी), आईएल एंड एफएस सिक्यूरिटीज (1.27 फीसदी), इंडिया ऑप्टिमा फंड (1.66 फीसदी) और रमेश दामाणी (1.21 फीसदी) शामिल हैं। हां, कंपनी बराबर लाभांश देती रही है। उसका पिछला लाभांश दस रुपए के शेयर पर 4.50 रुपए (45 फीसदी) का था। कंपनी की लाभांश यील्ड 3.30 फीसदी के शानदार स्तर पर है।