रुपया शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द ‘रौप्य’ से हुई है, जिसका अर्थ होता है, चांदी। भारतीय रुपये को हिंदी में रुपया, गुजराती में रुपयो, तेलगू व कन्नड़ में रूपई, तमिल में रुबाई और संस्कृत में रुप्यकम कहा जाता है। लेकिन बंगाली व असमिया में टका/टॉका और ओड़िया में टंका कहा जाता है।
भारत की उन गिने-चुने देशों में शुमार है जिसने सबसे पहले सिक्के जारी किए। परिणामत: इसके इतिहास में अनेक मौद्रिक इकाइयों (मुद्राओं) का उल्लेख मिलता है। इस बात के कुछ ऐतिहासिक प्रमाण मिले हैं कि पहले सिक्के 2500 और 1750 ईसा-पूर्व के बीच कभी जारी किए गए थे। लेकिन दस्तावेजी प्रमाण सातवीं/छठी शताब्दी ईसा-पूर्व के बीच सिक्कों की ढलाई के ही मिले हैं। इन सिक्कों के निर्माण की विशिष्ट तकनीक के कारण इन्हें पंच मार्क्ड सिक्के कहा जाता है। अगली कुछ सदियों के दौरान जैसे-जैसे साम्राज्यों का उदय और पतन हुआ, देश की मुद्राओं में इसका प्रगति-क्रम दिखाई देने लगा। इन मुद्राओं से प्रायः तत्कालीन राजवंश, सामाजिक-राजनीतिक घटनाओं, आराध्य देवों और प्रकृति का परिचय मिलता था। इनमें इंडो-ग्रीक काल के यूनानी देवताओं और उसके बाद के पश्चिमी क्षत्रप वाली तांबे की मुद्राएं शामिल हैं जो पहली और चौथी शताब्दी (ईसवीं) के दौरान जारी की गई थीं।
अरबों ने 712 ईसवीं में भारत के सिंध प्रांत को जीत कर उस पर अपना प्रमुख स्थापित किया। बारहवीं शताब्दी तक दिल्ली के तुर्क सुल्तानों ने लंबे समय से चली आ रही अरबी डिजाइन को हटाकर उनके स्थान पर इस्लामी लिखावटों को मुद्रित कराया। इस मुद्रा को टंका कहा जाता था। दिल्ली के सुल्तानों ने इस मौद्रिक प्रणाली का मानकीकरण करने का प्रयास किया और फिर बाद में सोने, चांदी और तांबे की मुद्राओं का प्रचलन शुरू हो गया।
सन् 1526 में मुगलों का शासनकाल शुरू होने के बाद समूचे साम्राज्य में एकीकृत और सुगठित मौद्रिक प्रणाली की शुरूआत हुई। अफगान सुल्तान शेरशाह सूरी (1540 से 1545) ने चांदी के ‘रुपैये’ अथवा रुपये के सिक्के की शुरूआत की। पूर्व-उपनिवेशकाल के भारत के राजे-रजवाड़ों ने अपनी अलग मुद्राओं की ढलाई करवाई, जो मुख्यत: चांदी के रुपये जैसे ही दिखती थीं, केवल उन पर उनके मूल स्थान (रियासतों) की क्षेत्रीय विशेषताएं भर अंकित होती थीं। अट्ठाहरवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में, एजेंसी घरानों ने बैंको का विकास किया। बैंक ऑफ बंगाल, द बैंक ऑफ हिन्दुस्तान, ओरियंटल बैंक कॉरपोरेशन और द बैंक ऑफ वेस्टर्न इंडिया इनमें प्रमुख थे। इन बैंकों ने अपनी अलग-अलग कागजी मुद्राएं उर्दू, बंगला और देवनागरी लिपियों में मुद्रित करवाई।
लगभग सौ वर्षों तक निजी और प्रेसिडेंसी बैंकों द्वारा जारी बैंक नोटों का प्रचलन बना रहा। परन्तु 1861 में पेपर करेंसी कानून बनने के बाद इस पर केवल सरकार का एकाधिकार रह गया। ब्रिटिश सरकार ने बैंक नोटों के वितरण में मदद के लिए पहले तो प्रेसीडेंसी बैंकों को ही अपने एजेंट के रूप में नियुक्त किया, क्योंकि एक बड़े भू-भाग में सामान्य नोटों के इस्तेमाल को बढ़ाया देना एक दुष्कर कार्य था। महारानी विक्टोरिया के सम्मान में 1867 में पहली बार उनके चित्र की श्रृंखला वाले बैंक नोट जारी किए गए। ये नोट एक ही ओर छापे गए (यूनीफेस्ड) थे और पांच मूल्यों में जारी किए गए थे।
बैंक नोटों के मुद्रण और वितरण का दायित्व 1935 में भारतीय रिजर्व बैंक के हाथ में आ गया। जॉर्ज पंचम के चित्र वाले नोटों के स्थान पर 1938 में जॉर्ज षष्ठम के चित्र वाले नोट जारी किए गए, जो 1947 तक प्रचलन में रहे। भारत की स्वतंत्रता के बाद उनकी छपाई बंद हो गई और सारनाथ के सिंहों के स्तम्भ वाले नोटों ने इनका स्थान ले लिया।
भारतीय रुपया 1957 तक तो 16 आनों में विभाजित रहा, परन्तु उसके बाद (1957 में ही) उसने मुद्रा की दशमलव प्रणाली अपना ली और एक रुपये की गणना 100 समान पैसों में की गई। महात्मा गांधी वाले कागजी नोटों की श्रृंखला की शुरूआत 1996 में हुई, जो आज तक चलन में है। नोटों के एक ओर सफेद वाले भाग में महात्मा गांधी का वाटर मार्क बना हुआ है। सभी नोटों में चांदी का सुरक्षा धागा लगा हुआ है जिस पर अंग्रेजी में आरबीआई और हिंदी में भारत अंकित है। प्रकाश के सामने लाने पर इनको देखा जा सकता है। पांच सौ और एक हजार रुपये के नोटों में उनका मूल्य प्रकाश में परिवर्तनीय स्याही से लिखा हुआ है। धरती के समानान्तर रखने पर ये संख्या हरी दिखाई देती हैं परन्तु तिरछे या कोण से देखने पर नीले रंग में लिखी हुई दिखाई देती हैं।
भारतीय रुपये के नोट के भाषा पटल पर भारत की 22 सरकारी भाषाओं में से 15 में उनका मूल्य मुद्रित है। ऊपर से नीचे इनका क्रम इस प्रकार है – असमिया, बंगला, गुजराती, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलुगु और उर्दू।
असल में पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में सरकारी मुद्रा को रुपया कहा जाता है। यह भारत के साथ ही भूटान, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, मॉरीशस, मालदीव और इंडोनेशिया जैसे कई देशों में प्रचलित हैं। इन सभी देशों में भारतीय रुपया मूल्य, स्वीकार्यता और लोकप्रियता के हिसाब से सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।
– मनीष देसाई, निदेशक (मीडिया) पत्र सूचना कार्यालय, मुम्बई (पीआईबी की साइट से साभार)
पुनश्च: इस जानकारी के बाद नीचे का वीडियो भी देख लीजिए। शायद आपने टेलिविजन पर इसे देखा होगा। फिर भी पेश है – पैसा बोलता है…