धमाकों से सनकता ही नहीं सेंसेक्स!

हमारा शेयर बाजार या तो किसी योगी और पहुंचे हुए संत-फकीर की तरह बर्ताव करता है जो दीन-दुनिया से एकदम निर्लिप्त है या उस मूढ़ की तरह जिस पर कोई जगतगति नहीं ब्यापती। नहीं तो क्या वजह है कि बुधवार की शाम मुंबई में आतंकवादियों के सीरियल बम धमाकों के बाद गुरुवार को शेयर बाजार ने ऐसा दिखाया जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। बीएसई सेंसेक्स बुधवार के बंद स्तर 18,596.02 से जरा-सा नीचे 18,563.69 पर खुला। फिर ऊपर में 18,803.04 तक लगा गया और नीचे में 18,449.23 तक जाने के बाद बंद हुआ 18,618.20 अंक पर, यानी 0.12 फीसदी की बढ़त के साथ।

यह कोई इस बार की नहीं, बल्कि पिछले 18 सालों का दास्तान है। 1993 से लेकर अब तक देश की आर्थिक राजधानी में हुए सात प्रमुख आंतकवादी हमलों में से केवल एक बार सेंसेक्स ने थोड़ी-सी हिचकी ली है। नहीं तो वह हमेशा धमाकों के अगले दिन बढ़ता ही रहा है। मुंबई ने पहला जबरदस्त हमला झेला था 12 मार्च 1993 को, जब करीब तीन महीने पहले बाबरी मस्जिद को ढहाने जाने की प्रतिक्रिया में दाऊद एंड कंपनी ने एक के एक 13 धमाकों से पूरा मुंबई को हिला दिया था। एक धमाकों तो ठीक बीएसई की पार्किंग में हुआ था। लेकिन अगले दिन 13 मार्च 1993 को सेंसेक्स 2.54 फीसदी बढ़ गया।

ठीक दस साल बाद 13 मार्च 2003 को मुंबई पर आतंकवादियों ने फिर हमला किया। सेंट्रल लाइन पर मुलुंड में लोकल के फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट में बम फोड़ा गया। 11 लोग मारे गए। उस दिन सेंसेक्स 3108 पर बंद हुआ था। अगले दिन मात्र 0.74 फीसदी घटकर 3085 पर बंद हुआ। इसके तीन महीने बाद 29 जून 2003 को घाटकोपर में बेस्ट की एक बस में धमाका हुआ। कम से कम चार लोग मारे गए, 40 घायल हुए। उस दिन सेंसेक्स 3583 पर बंद हुआ था। अगले दिन 0.67 फीसदी बढ़कर 3607 पर पहुंच गया।

इसके दो महीने बाद ही 25 अगस्त 2003 को झावेरी बाजार और गेटवे ऑफ इंडिया पर जबरदस्त बम धमाके हुए। कुल 54 लोग मारे गए और 244 घायल हो गए। पूरी मुंबई ही नहीं, पूरा देश दहशत में आ गया। लेकिन शेयर बाजार के माथे पर चढ़ते तेजी के सुरूर पर कोई फर्क नहीं पड़ा। उस दिन सेंसेक्स बंद हुआ था 4004 अंक पर। अगले दिन 3.69 फीसदी उछलकर 4152 पर पहुंच गया।

फिर तीन साल बाद 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में एक के बाद एक जबरदस्त धमाके हुए। हर तरफ कोहराम मच गया। 200 से ज्यादा लोग मारे गए और 700 से ज्यादा घायल हुए। उस दिन शाम को हुए अब तक के इस भयंकरतम आतंकवादी हमले से पहले सेंसेक्स 10,614 पर बंद हुआ था। अगले दिन वह चहकता हुआ 2.98 फीसदी बढ़कर 10,930 पर जा पहुंचा। कहा जा सकता है कि शेयर बाजार अमीरों का शगल है। आम लोगों की विपदा से इस पर कोई फर्क नहीं पड़ता।

लेकिन दो साल बाद 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकवादी हमलों ने इस मिथ को भी तोड़ दिया। उस रात तो छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर आम लोगों के साथ ही ताज पैलेस व ओबेरॉय ट्राइडेंट जैसे होटलों में खास अमीर लोगों को भी निशाना बनाया गया था। वॉशिंगटन तक इसकी धमक पहुंच गई। 9/11 की तरह 26/11 का जुमला चल गया। उस दिन धमाकों से पहले सेंसेक्स 9027 पर बंद हुआ था। अगले दिन 27 नवंबर गुरुवार को वह 0.73 फीसदी अंक बढ़कर 9093 पर बंद हुआ।

18 सालों के इस इतिहास से एक बात एकदम साफ है कि आतंकवाद अर्थव्यवस्था के लिए मच्छर काटने जैसी अहमियत रखता है। इससे आर्थिक विकास पर खास फर्क नहीं पड़ता। इसलिए कंपनियों पर भी असर नहीं पड़ता। तो, इनकी गति दर्शानेवाला शेयर बाजार क्यों कर प्रभावित होने लगा! वैसे भी, चाहे गुलशन हो या जिंदगी, उसका कारोबार तो चलते ही रहना चाहिए न!!!

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