म्यूचुअल फंडों को मोहलत, कंपनियों का निवेश सूखने का खतरा एक माह टला

पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी 1 जुलाई 2010 से ऐसा नियम लागू करने जा रही थी, जिससे म्यूचुअल फंडों में कॉरपोरेट क्षेत्र का छोटी अवधि का भारी निवेश दूर भाग सकता था। लेकिन सेबी ने एक नया सर्कुलर जारी कर इस पर अमल की तारीख 1 अगस्त 2010 कर दी है। वैसे, साथ ही कहा कि जो म्यूचुअल फंड इसकी तैयारी कर चुके हों, वे इसे पहले भी लागू कर सकते हैं।

असल में सेबी ने 2 फरवरी 2010 को एक सर्कुलर जारी कर कह दिया था कि म्यूचुअल फंडों को 1 जुलाई 2010 से मनी मार्केट और छोटी अवधि (365 दिन या इससे कम) के ऋण प्रपत्रों का मूल्यांकन निर्धारित ब्याज दर के बजाय बाजार के मूल्य के आधार करना होगा। उनके ऐसे हर फंड की एनएवी (शुद्ध आस्ति मूल्य) किसी खास दिन उसके बाजार मूल्य से तय होगी, न कि स्थाई ब्याज की दर की गणना से। इसी के बाद म्यूचुअल फंड प्रबंधन में खलबली मची हुई है। कारण यह है कि ऋण प्रपत्रों का बाजार भाव हर दिन घट-बढ़ सकता है जिसके हिसाब से उन पर यील्ड की दर बढ़-घट सकती है भले ही उसकी कूपन/ब्याज दर स्थिर हो।

अभी तक कोई भी कंपनी पहले से मानकर निश्चिंत रह सकती है कि उसे म्यूचुअल फंड के लिक्विड या लिक्विड प्लस फंड में इतने दिन में इतना ही रिटर्न मिलेगा। लेकिन सेबी के नए नियम से लिक्विड या लिक्विड प्लस स्कीमों का रिटर्न अनिश्चित हो जाएगा। इसके चलते कॉरपोरेट क्षेत्र अपना इस तरह का शॉर्ट टर्म निवेश म्यूचुअल फंड स्कीमों से निकालकर बैंकों की एफडी या कॉल मनी वगैरह लगा सकता है। यह म्यूचुअल के लिए बड़े खतरे की घंटी है क्योंकि म्यूचुअल फंड शोध संस्था वैल्यू रिसर्च के मुताबिक म्यूचुअल फंड उद्योग की कुल आस्तियों (एयूएम) का लगभग 53 फीसदी हिस्सा शॉर्ट टर्म डेट फंड से आता है। दूसरे शब्दों में मई 2010 में अगर म्यूचुअल फंडों का कुल एयूएम 8.04 लाख करोड़ रुपए रहा है तो इसमें से 4.26 लाख करोड़ रुपए एक साल से कम अवधि के ऋण प्रपत्रों से आए हैं।

गौर करने की बात यह है कि शॉर्ट टर्म डेट फंड में तकरीबन सारा निवेश कंपनियों या बैंकों का है। हालांकि, रिजर्व बैंक पहले ही बैंकों को इस तरह के ‘सर्कुलर’ निवेश से आगाह कर चुका है जिसके बाद उनके म्यूचुअल फंड निवेश में कमी आई है। जैसे, पिछले साल 5 जून 2009 को म्यूचुअल फंडों में बैंकों का निवेश 1,20,322 करोड़ रुपए का था, लेकिन साल भर बाद 4 जून 2010 तक यह घटकर 50,563 करोड़ रुपए पर आ गया है।

माना जा रहा है कि सेबी का नया मार्क टू मार्केट नियम लागू होने से कॉरपोरेट क्षेत्र म्यूचुअल फंड में अपना धन पार्क करने से कतरा सकता है। अभी कंपनियां दो-चार दिन के लिए भी अपनी नकदी म्यूचुअल फंड में लगाती रही हैं क्योंकि एक तो इस पर उन्हें बैंक एफडी से ज्यादा रिटर्न मिलता था, दूसरे रिटर्न पर टैक्स नहीं देना पड़ता था और तीसरे, वे जब मन चाहे अपना निवेश बाहर निकाल सकती थीं। सेबी ने म्यूचुअल फंडों की कॉरपोरेट क्षेत्र पर निर्भरता घटाने के लिए नया नियम बनाया है। लेकिन लगता है कि आज के हालात में इसे अपनाना म्यूचुअल फंडों के लिए भारी मुसीबत का सबब बन जाएगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *