देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई (भारतीय स्टेट बैंक) का कहना है कि उसका काम केंद्र सरकार से मिलने वाले 7900 करोड़ रुपए से नहीं चलेगा, बल्कि उसे बढ़ती ऋण मांग को पूरा करने के लिए हर साल 15,000 करोड़ रुपए की दरकार है। बैंक के मुख्य वित्तीय अधिकारी (सीएफओ) दिवाकर गुप्ता ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में कहा, “बैंक को संचित लाभ समेत कुल 15,000 करोड़ रुपए की जरूरत है। हमें निश्चित रूप से अगले वित्त वर्ष 2012-13 में धन जुटाना पड़ेगा। हमें देखना होगा कि सरकार और धन देती है या नहीं।”
बता दें कि कल, सोमवार को ही वित्त सचिव डी के मित्तल ने बताया था कि भारत सरकार एसबीआई में अधिकतम 7900 करोड़ रुपए डालने के सहमत हो गई है। यह निवेश प्रेफरेंशियल शेयरों के माध्यम से किया जाएगा। एसबीआई में इस समय सरकार की हिस्सेदारी 59.40 फीसदी है। नए निवेश के बाद इसमें दो से सवा दो फीसदी का इजाफा हो जाएगा। इस खबर के असर से मंगलवार को एसबीआई का शेयर 3.53 फीसदी बढ़कर 2061.05 रुपए पर बंद हुआ। अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष 2011-12 में बैंक का समेकित शुद्ध लाभ 10,980 करोड़ रुपए रहेगा। पिछले वित्त वर्ष में उसका शुद्ध लाभ 10,690 करोड़ रुपए रहा था।
गौरतलब है कि देश में दिए गए जानेवाले कुल ऋणों का 70 फीसदी हिस्सा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से आता है और इन सभी में सरकार की 50 फीसदी से ज्यादा इक्विटी हिस्सेदारी है। इसलिए सही पूंजी पर्याप्तता अनुपात बनाए रखने के लिए सरकार को बराबर इन बैंकों में पूंजी डालते रहना पड़ता है। इस साल उसने सरकारी बैंकों में कुल 16,000 करोड़ लगाने की घोषणा कर रखी है। इस साल मार्च अंत तक बैंकों के ऋण प्रवाह में लगभग 16 फीसदी वृद्धि का अनुमान है। रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर 2011 तक के नौ महीनों में यह 15.8 फीसदी बढ़ा है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसमें 27.3 फीसदी का इजाफा हुआ था।