संत और सत्ता

इंसान और विपक्ष का असली चरित्र तभी खुलता है जब उसे सत्ता मिलती है। तभी पता चलता है कि वो कितना संत था और कितना ढोंगी, उसकी बातों में कितनी लफ्फाजी थी और कितनी सच्चाई। संत तो सत्ता पाकर भी सृजनरत रहता है।

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