ज्ञान और धन, दोनों ही बिना जोखिम उठाए नहीं मिलते। यह आज का नहीं, बल्कि शाश्वत सच है। संत कबीर भी कह चुके हैं कि जिन ढूंढा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठि; मैं बपुरा बूड़न डरा, रहा किनारे बैठि।
2010-06-24
ज्ञान और धन, दोनों ही बिना जोखिम उठाए नहीं मिलते। यह आज का नहीं, बल्कि शाश्वत सच है। संत कबीर भी कह चुके हैं कि जिन ढूंढा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठि; मैं बपुरा बूड़न डरा, रहा किनारे बैठि।
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वाह, सच है । डूबने से डरने वाले को तैरना कब आयेगा ।
और अगर मिल जाएँ (दैवयोगेन) तो काम नहीं आते।