शेयर बाज़ार हो या वित्तीय बाज़ार का कोई भी निवेश, वो किसी निर्वात में नहीं होता। हर निवेश का एक संदर्भ और माहौल होता है। इधर साल भर पहले मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए अमेरिका से ब्याज दरें बढ़ाने का सिलसिला जब से शुरू हुआ, तब से सारी दुनिया के वित्तीय समीकरण बदल गए हैं। अमेरिका में तो ब्याज दरों के शून्य से 5% पहुंचने का ही नतीजा है कि बैंकों के सारे बॉन्ड पोर्टफोलियो की बाट लग गई। ब्याज दरों के साथ यील्ड बढ़ने से बॉन्डों के दाम धराशाई हो गए और सिलकॉन वैली बैंक व सिग्नेचर बैंक जैसे कई बैंक बैठ गए। भारत में भी ब्याज दरें बढाई गईं तो आज स्थिति यह है कि बैंकों के एफडी पर पीपीएफ जैसे माध्यमों से ज्यादा 7.5% तक सालाना ब्याज मिलने लगा है। अब तो इन्हें शेयरों का रिटर्न ही मात दे सकता है, वो भी अच्छी, मजबूत व संभावनामय कंपनियों में। आज तथास्तु में ऐसी ही एक कंपनी…
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