सरकार नए निवेशकों को शेयर बाजार में खींचने के लिए बेताब है। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने राजीव गांधी इक्विटी सेविंग्स स्कीम को और आकर्षक बना दिया है। अभी तक इस स्कीम में वे लोग ही निवेश कर सकते हैं, जिनकी सालाना आय 10 लाख रुपए या इससे कम है। लेकिन नए वित्त वर्ष 2013-14 से यह सीमा बढ़ाकर 12 लाख रुपए कर दी गई है।
साथ ही अभी तक नियम यह है कि इस स्कीम का फायदा नए निवेशकों को शेयर बाजार में केवल एक बार 50,000 रुपए के चुनिंदा निवेश पर मिलेगा। इस पर भी तीन साल का लॉक-इन अवधि लागू होगी। लेकिन अब निवेशक यह सुविधा तीन साल तक ले सकता है। इसका मतलब यह होगा कि नया निवेशक तीन साल तक 50,000 रुपए चुनिंदा शेयरों या म्यूचुअल फंड स्कीमों में लगाकर अपनी करयोग्य आय में अधिकतम इतनी रकम घटा सकता है।
असल में वित्त मंत्री की चिंता यह है कि देश में बचत दर घट रही है। खासकर हाउसहोल्ड या आम लोगों की बचत वित्तीय माध्यमों में न लगकर जमीन-जायदाद या सोने में लग रही है। 2007-08 में सकल घरेलू बचत की दर 36.8 फीसदी थी। लेकिन 2011-12 तक यह दर 6 फीसदी घटकर जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की 30.6 फीसदी रह गई। यही नहीं, इस दौरान हाउसहोल्ड बचत घटकर मात्र 22.3 फीसदी हो गई। सोने व रीयल एस्सेट जैसे अनुत्पादक माध्यमों में उनका निवेश जीडीपी के एक फीसदी से बढ़कर 1.3 फीसदी हो गया। नोट करने की बात यह है कि घरेलू बचत के मामले में निजी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र की बचत इस सालों में खास कम नहीं हुई है।
दिक्कत यह है कि घरेलू बचत और निवेश का अंतर चालू खाते के घाटे (सीएडी) के रूप में सामने आता। यह जीडीपी के 5.4 फीसदी के खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है। इसे पाटने के लिए सरकार को विदेशी पूंजी का मुंह जोहना पड़ रहा है। कारण, अगर विदेशी पूंजी देश में नहीं आई तो डॉलर की मात्रा कम होने के कारण रुपया का मूल्य घटता जाएगा। जो डॉलर अभी 55 रुपए में मिल रहा है, वह 60 रुपए में मिलने लग सकता है। रुपए का मूल्य घटने से आयात महंगा हो जाएगा। इससे मुद्रास्फीति को और आग लग सकती है।
इसीलिए सरकार बड़ी बेताबी से चाहती है कि आम लोगों की बचत सोने या रीयल एस्सेट में न लगकर शेयर बाजार जैसी वित्तीय आस्तियों में लगे। यही वजह है कि उसने राजीव गांधी इक्विटी सेविंग्स स्कीम को पहले से ज्यादा आकर्षक बना दिया है। वित्त मंत्री का कहना था कि वे मुद्रास्फीति के असर को समाहित करने के लिए अधिकतम सालाना आय की सीमा को बढ़ाकर 12 लाख रुपए कर रहे हैं। वैसे, अभी तक राजीव गांधी इक्विटी सेविंग्स स्कीम को आम निवेशकों की तरफ से क्या सहयोग मिला है, यह स्पष्ट नहीं है। दरअसल, अभी तो इसकी शुरुआत ही हो रही है, जिसका असर अगले वित्त वर्ष में नज़र आएगा। किन शेयरों या म्यूचुअल फंड स्कीमों में इस योजना का फायदा मिलेगा, वे शर्ते पहले जैसी ही रखी गई हैं।