सरकार ने बड़ी पहल करते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा इस साल के बजट में की गई उस घोषणा पर अमल कर दिया है, जिसके तहत विदेशी निवेशकों को सीधे भारतीय म्यूचुअल फंडों में निवेश की इजाजत दी गई है। खास बात यह है कि बजट भाषण में केवल इक्विटी स्कीमों में निवेश की बात की गई थी, जबकि ताजा फैसले में इक्विटी के साथ-साथ ऋण स्कीमों को भी शामिल कर लिया गया है। इस बारे में वित्त मंत्रालय समेत पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी और रिजर्व बैंक ने अलग से नियमावली जारी की है। इनमें इससे जुड़ा सारा तकनीकी ब्यौरा दिया गया है।
वित्त मंत्रालय का कहना है कि बजट में कहा गया था कि अगस्त के पहले हफ्ते में इस पर अमल की घोषणा कर दी जाएगी। इस बारे में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के 1 अगस्त को प्रमुख उद्योगपतियों के साथ मुलाकात में चर्चा की है और उनसे मिले फीडबैक के बाद नियमों को अंतिम रूप दिया गया है।
इन विदेशी निवेशकों को क्यूएफआई (क्वालिफाइड फॉरेन इनवेस्टर) कहा जाएगा। इसमें उन देशों के व्यक्तिगत निवेशक, उनके समूह या संघ शामिल हैं जो फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के मानकों को पूरा करते हैं और जिन्होंने आईओएससीओ (इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ सिक्यूरिटीज कमीशन) के बहुपक्षीय एओयू पर हस्ताक्षर कर रखा है। क्यूएफआई में एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशक) या उनके सब-एकाउंट शामिल नहीं होंगे क्योंकि उनको तो सेबी व रिजर्व बैंक के दिशानिर्देशों के तहत पहले ही भारत के इक्विटी व ऋण बाजार में निवेश की इजाजत मिली हुई है। इनमें विदेशी वेंचर कैपिटल फंड भी शामिल नहीं हैं क्योंकि उनको भी अलग से अनुमति मिली हुई है।
पहले सरकार का विचार क्यूएफआई को केवल इक्विटी म्यूचुअल फंड स्कीमों में निवेश की इजाजत देने का था। लेकिन उद्योग प्रमुखों से वार्ता के बाद वित्त मंत्री को लगा कि देश के ऋण बाजार को भी बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है। इसलिए तय किया गया है कि क्यूएफआई को म्यूचुअल फंडों की उन ऋण स्कीमों में भी निवेश की छूट होगी जो इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास से ताल्लुक रखती हैं। वित्त मंत्रालय ने तय किया है कि फिलहाल क्यूएफआई को म्यूचुअल फंडों की इक्विटी स्कीमों में कुल 10 अरब डॉलर और ऋण स्कीमों में 3 अरब डॉलर यानी कुल 13 अरब डॉलर निवेश की इजाजत होगी। इससे म्यूचुअल फंडों की आस्तियां 58,721 करोड़ रुपए बढ़ सकती हैं। इस समय देश के कुल 40 म्यूचुअल फंडों का एयूएम या आस्तियां 7.28 लाख करोड़ रुपए हैं।
सरकार के फैसले के मुताबिक विदेशी निवेशक भारतीय म्यूचुअल फंडों में दो तरीके से निवेश कर सकते हैं। एक है सीधा रास्ता जिसमें वे सेबी के पास पंजीकृत डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट (डीपी) के पास डीमैट खाता खुलवा सकते हैं। लेकिन वे किसी एक डीपी के पास एक ही डीमैट खाता खुलवा सकते हैं। इसी खाते के जरिए उनका सारा निवेश व लेनदेन होगा। दूसरा परोक्ष रास्ता है जिसमें यूनिट कंफर्मेशन रिसीट्स (यूसीआर) का सहारा लिया जाएगा। इसमें विदेशी निवेशक विदेश स्थित यूसीआर जारी करनेवाले के संपर्क में रहेगा जो भारत स्थित कस्टोडियन व म्यूचुअल फंड से जुड़ा रहेगा। यह रास्ता थोड़ा जटिल है। लेकिन लगता है कि इसे उन निवेशकों के लिए बनाया गया है जो खुलकर अपनी पहचान नहीं घोषित करना चाहते।
वित्त मंत्रालय का कहना है कि इससे भारतीय बाजार में भाग लेनेवाले विदेशी निवेशकों का वर्ग बढ़ जाएगा और इससे बाजार की गहराई बढ़ाने और उतार-चढ़ाव को रोकने में मदद मिलेगी। सेबी ने अपनी तरफ से स्पष्ट किया है कि क्यूएफआई प्राइमरी बाजार से ही म्यूचुअल फंडों की यूनिटें खरीद सकते हैं। वे शेयर बाजार में इनकी ट्रेडिंग नहीं कर सकते। यानी, अपनी यूनिटों का विमोचन इन विदेशी निवेशकों को म्यूचुअल फंडों से ही कराना होगा। रिजर्व बैंक ने बताया है कि इन निवेशकों को उनके लाभांश का भुगतान म्यूचुअल फंड सीधे उनके विदेशी खाते में कर देंगे। उन्हें यह धन रुपए के सिंगल पूल बैंक खाते में डालने की इजाजत नहीं होगी।
बता दें कि 28 फरवरी 2011 को वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने अपने बजट भाषण में कहा था, “इस समय केवल एफआईआई, उनके सब-एकाउंट और अनिवासी भारतीयों को ही म्यूचुअल फंड स्कीमों में निवेश की इजाजत है। पोर्टफोलियो निवेश रूट को उदार बनाने के लिए तय किया गया है कि केवाईसी (नो योर कस्टमर) मानकों को पूरा करने वाले विदेशी निवेशकों को सेबी में पंजीकृत म्यूचुअल फंडों की इक्विटी स्कीमों में निवेश की इजाजत दे दी जाए। इसे भारतीय इक्विटी बाजार में विदेशी निवेशकों के वर्ग का विस्तार होगा।”