बर्फ से ढंके यूरोपीय देश स्विटजरलैंड के दावोस शहर में दुनिया भर के प्रभुता-संपन्न और एक फीसदी अमीरतम लोगों के नुमाइंदे अपनी सालाना बहस के लिए जुट चुके हैं। आल्प्स की खूबसूरत पहाड़ियों और बर्फीली वादियों के बीच वे आज, 25 जनवरी बुधवार से 29 जनवरी रविवार तक विश्व अर्थव्यवस्था की दशा-दिशा पर विचार करेंगे। लेकिन उनके साथ जिरह करने के लिए दुनिया के 99 फीसदी वंचितों के प्रतिनिधियों ने भी इग्लू के कैंपों में डेरा डाल रखा है। ये साल भर पहले न्यूयॉर्क में ‘वॉल स्ट्रीट कब्जा करो’ अभियान से शुरू हुए उस आंदोलन से जुड़े लोग हैं जो अब अमेरिका ही नहीं, समूचे यूरोप व अन्य विकसित देशों को अपने घेरे में ले चुका है।
वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) की सालाना बैठक की शुरुआत यूरोप की सबसे शक्तिशाली नेता जर्मन चांसलर एंगेला मैर्केल के संबोधन से हो रही है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरून कल, गुरुवार को बोलेंगे। लेकिन एक तरफ सरकारों के प्रतिनिधि, बड़ी-बड़ी कंपनियों के शीर्ष अधिकारी और बैंकर बर्फ के बीच भी सामान्य तापमान पर विशाल सुसज्जित हॉलों में ठंडी बहस करेंगे, दूसरी तरफ बर्फ से ही बने इग्लू के कैंपों में दुनिया भर के तमाम जन-पक्षधर बुद्धिजीवी व सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता उनसे गरमागरम जिरह करने को आतुर हैं। वैसे, इसी समय ब्राजील के शहर पोर्टो अलाग्रे में भी पूंजीवाद के विरोध में वर्ल्ड सोशल फोरम (डब्ल्यूएसएफ) की बैठक चल रही है, जिसमें दुनिया भर में 15,000 कार्यकर्ताओं का जमावड़ा मंगलवार से शुरू हो चुका है, जो रविवार 29 जनवरी तक चलेगा।
लेकिन कब्जा करो आंदोलन ने पिछले एक साल के दौरान दुनिया में अपनी ज्यादा ही धाक जमा ली है। अंततराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दावोस में कैंप इग्लू के संगठनकर्ता और स्विटजरलैंड के एक युवा नेता डेविड रोथ का कहना है, “वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की इन बैठकों में दुनिया के एक फीसदी प्रभुता-संपन्न लोग वार्ताएं करेंगे, जबकि बाकी 99 फीसदी लोग बहिष्कृत हैं। ये लोग आखिर दुनिया के बाकी 99 फीसदी लोगों की किस्मत का फैसला कैसे कर सकते हैं?” उन्होंने कहा, “एक छोटे, सुविधा व शक्ति संपन्न अल्पमत के हाथों में आर्थिक व वित्तीय शक्ति का संकेंद्रण बाकी हम सभी के ऊपर तानाशाही का सबब बन जाता है। पहले एक व्यक्ति, एक वोट का मामला था। अब तो यह एक डॉलर, एक वोट का मसला बन गया है। हम इस सूरत को बदलना चाहते हैं।”
रोथ के संगठन ने डब्ल्यूईएफ के सभागार के इर्दगिर्द सुरक्षा घेरे के बाहर कार पार्किंग वाले इलाके में बर्फ के इग्लू कैंप बना रखे हैं। हर इग्लू में पांच-दस आंदोलनकारी धंसे पड़े हैं। रोस और उनके साथी चाहते हैं कि वैश्वीकरण के शीर्ष मंच का पर्याय बन चुके इस फोरम में आनेवाले 2000 लोगों से वे दुनिया की आर्थिक हालत को लेकर जिरह कर सकें। लेकिन वे अपने मकसद में शायद ही कामयाब हो पाएं। दावोस में बाहर से तमाम लोग ज्यूरिख शहर से विशेष ट्रेन, निजी जेट या हेलिकॉप्टर में आ रहे हैं। उनका एक बार आने-जाने का खर्च ही करीब 5500 अमेरिकी डॉलर (2.75 लाख रुपए) है।
इस बीच फोरम का विरोध करनेवाले कुछ लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया है। हालांकि फोरम के भीतर से दुनिया के बिगड़ते हालात के साथ ही बढ़ती बेरोजगारी पर चिंता जताई जा रही है। फोरम की तरफ से दुनिया के 469 विशेषज्ञों व उद्योग नेताओं के बीच कराए गए सर्वे के आधार पर जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी, पेंशनर लोगों में अपने भविष्य को लेकर बढ़ती असुरक्षा और गरीबों-अमीरों के बीच बढ़ती खाईं ने आतंक के बीज बो दिए हैं।
विश्व आर्थिक मंच या डब्ल्यूईएफ के प्रबंध निदेशक ली हॉवेल का कहना है, “मध्य वर्ग सिकुड़ता-सिमटता जा रहा है। यह महज किसी चक्र का मसला नहीं है। हर कोई गिर रहा है। बाहर छिटक रहा है। इस बार हो सकता है कि बहुत सारे छिटके लोग दोबारा संभलकर पिछली स्थिति में न आ सकें।”
इस सालाना जलसे में आईएमएफ व विश्व बैंक समेत सारी वैश्विक संस्थाओं के प्रमुखों के साथ बड़ी-बड़ी राजनीतिक हस्तियां शिरकत रही है। इनमें पाकिस्तान के नेता व पूर्व क्रिकेटर इमरान खान से लेकर मीडिया सम्राट रूपर्ट मरडोक तक शामिल हैं। भारतीय कॉरपोरेट जगत के भी प्रतिनिधि वहां बड़ी तादाद में पहुंच चुके हैं। इनमें विप्रो के प्रमुख अजीम प्रेमजी और एचसीएल टेक्नोलॉजीज के सीईओ विनीत नायर शुमार हैं। (स्रोत: रॉयटर्स)