बाजार अब सीधे मंगलवार को खुलेगा। अनिश्चितता का आलम है। ट्रेडरों ने ज्यादातर सौदे शुक्रवार को ही काट लिये क्योंकि उन्हें डर है कि मंगलवार को जब बाजार खुलेगा, तब तक अमेरिका व यूरोप के संकट का कोई नया पेंच न सामने आ जाए। सब कुछ शॉर्ट टर्म हो गया है। खबरों पर बाजार और अलग-अलग स्टॉक्स की गति निर्भर है। लेकिन शेयर बाजार सबसे बड़ा पेंच यह है कि अक्सर खबर के सार्वजनिक होने तक उसका असर हो चुका होता है। मीडिया को जब तक खबर लगती है तब तक खिलाड़ियों का खेल खत्म हो चुका है और दिशा पलट चुकी होती है। इसलिए हमारे-आप जैसे आम निवेशक अगर खबरों पर खेलने की कोशिश करते हैं तो चोट खाकर हताश हो जाते हैं।
कहने को दुनिया भर के पूंजी बाजार नियामकों की तरह सेबी ने भी इनसाइडर ट्रेडिंग को अपराध बना रखा है। लेकिन खबरें उड़कर पहले ही उस्तादों के पास पहुंच जाती हैं। कल 12 अगस्त को टाटा स्टील ने जून 2011 की तिमाही के नतीजे पेश किए। पता चला कि समेकित लाभ साल भर पहले के 1825.23 करोड़ के लाभ से 192.92 फीसदी बढ़कर लगभग तीन गुना 5346.6 करोड़ रुपए हो गया है। लेकिन शेयर एनएसई में 1.95 फीसदी गिरकर 474.95 रुपए और बीएसई में 1.69 फीसदी गिरकर 476.35 रुपए पर आ गया। शेयर 20-25 दिन पहले जरूर बढ़ा था। 25 जुलाई को यह 594 रुपए पर था। लेकिन तभी से उस्तादों से इसे बेचना शुरू कर दिया। लगता है अच्छे नतीजे उन्हें पहले से पता थे और उन्होंने इसका इस्तेमाल शेयर को उठाकर बाद में निकालने में किया। नतीजों की खबर आई, इससे पहले उसका असर हो चुका था।
यह अपवाद नहीं, नियम है। बाजार हमेशा मीडिया से आगे चलता है। खिलाड़ी खबरों के लिए नहीं मीडिया पर नहीं, अपने स्रोतों पर यकीन करते हैं। किसी जमाने में धीरूभाई अंबानी ने हर काम के सरकारी मंत्रालय में अपने लोग बैठा रखे थे। आज भी अंदर की सूचनाएं खबर बनने से पहले बाजार के उस्तादों तक पहुंच जाती हैं। मीडिया में खबर दो ही तरीके से पहुंचती है। या तो वह किसी के द्वारा प्लांट कराई जाती है या कोई पारखी पत्रकार ट्रेंड को पकड़कर उस पर लिख मारता है।
अगर खबर प्लांट कराई गई है तो उसके पीछे किसी न किसी का स्वार्थ होता है। वो खबर चाहे सकारात्मक हो या नकारात्मक, उसका अनुसरण करने में नुकसान होता है। अगर पत्रकार ने ट्रेंड पकड़कर खबर निकाली है तो समझ लीजिए कि अब वो जो कुछ लिखेगा, उसका उल्टा होनेवाला है। कारण, कोई ट्रेंड जब तक नजर आता है, तब तक बाजार की दिशा मुड़ने की शुरुआत हो चुकी होती है। आप खुद आजमाकर देख लीजिए कि इकनॉमिक टाइम्स या दूसरे आर्थिक अखबारों में जब किसी शेयर को खरीदने की सलाह आती है, तब उसमें बेचने का सिलसिला शुरू हो चुका होता है।
ईटी वेल्थ ने बीते हफ्ते 8 अगस्त के अंक में यस बैंक को ‘पिक ऑफ द वीक’ बताया था। यह शेयर हफ्ते के दौरान 3.89 फीसदी गिरा है। दिसंबर 2007 में मैंने इकनॉमिक टाइम्स की इनवेस्टर गाइड में दी गई सलाह मानकर एमटीएनएल 182.50 रुपए के भाव पर खरीदा। उसके बाद शेयर गिरता गया। मैं खरीदकर एवरिंग करता गया। अभी वो शेयर 40.70 रुपए पर है। सारी एवरिंज के बाद मुझे 58.86 फीसदी का घाटा हो चुका है। इसलिए खबरों, सलाहों या टिप्स के पीछे भागने में कोई फायदा नहीं। खुद देखभाल कर लगें कि कंपनी के फंडामेंटल मजबूत हैं, उसका भविष्य सही दिशा में जा रहा है, तभी निवेश करना चाहिए। वैसे भी खबरों के पीछे ट्रेडर भागते हैं, लंबे समय के निवेश नहीं।
बाजार मीडिया की खबरों से उलटी दिशा कैसे पकड़ता है, इसके कुछ पुराने उदाहरण। साल 1974 का आखिरी दौर था। 1930 की महामंदी के बाद शेयर बाजार सबसे तगड़ी मंदी की गिरफ्त में था। न्यूजवीक पत्रिका की कवर स्टोरी थी – बिग बैड बियर। लिखा गया कि शेयर बाजार मंदी की दलदल में धंसने जा रहा है। लेकिन अगले दो सालों में बाजार करीब 50 फीसदी बढ़ गया। 1979 में बिजनेसवीक पत्रिका ने कवर पर खोपड़ी छापते हुए स्टोरी की कि इक्विटी बाजार की मौत होने जा रही है। लेकिन उसके बाद बाजार में तेजी का जो दौर शुरू हुआ, वह 21 सालों तक अनवरत चलता रहा। दिसंबर 1999 में अमेज़ॉन डॉट कॉम के प्रवर्तक जेफ बेज़ोस को टाइम मैगजीन से मैन ऑफ द इयर घोषित किया। कुछ ही महीनों बाद डॉट कॉम का बुलबुला फट गया।
दुनिया भर में बहुत सारे लोगों ने खबरों और शेयर बाजार के रुख पर रिसर्च की है। सबका सार यही है कि मुख्य पत्र-पत्रिकाएं या नामी मीडिया संस्थान जो कहें, मानकर चलिए कि उसका उल्टा होने जा रहा है। अगर वे कहें कि तेजी आ रही है तो सावधान हो जाइए क्योंकि मंदी का प्रकोप आनेवाला है। अगर वे कहें कि बाजार मंदी के मुहाने पर है तो समझ लीजिए कि तेजी अब ज्यादा दूर नहीं है। अगर हर तरफ से किसी शेयर को खरीदने का हल्ला उठे तो समझ लीजिए कि उसे बेचने में ही भलाई है। बाकी आप खुद समझदार हैं।