हम अगर ताज़िंदगी एक ही जगह कदमताल करते रह जाते हैं तो इसके लिए हालात कम, हम ज्यादा दोषी हैं क्योंकि हालात किसी भगवान से नहीं, हमारे जैसे इंसानों से ही बनाए हैं जिनसे हम लोहा ले सकते हैं।
2011-11-23
हम अगर ताज़िंदगी एक ही जगह कदमताल करते रह जाते हैं तो इसके लिए हालात कम, हम ज्यादा दोषी हैं क्योंकि हालात किसी भगवान से नहीं, हमारे जैसे इंसानों से ही बनाए हैं जिनसे हम लोहा ले सकते हैं।
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