जो बात एक्सिस बैंक अपने विज्ञापन में खुद को अलग दिखाने के लिए कर रहा है, उसी बात का फैसला देश भर के बैंकिंग ओम्बड्समैन ने अपने सालाना सम्मेलन में सभी बैंकों के लिए कर लिया है। रिजर्व बैंक के गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव समेत बैंकों के शीर्ष संगठन इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (आईबीए) के आला अधिकारियों की मौजूदगी में बैंकिंग ओम्बड्समैन सम्मलेन ने तय किया है कि बैंकों को फ्लोटिंग रेट लोन पर कतई कोई प्री-पेमेंट शुल्क नहीं लेना चाहिए। इस समय एक्सिस बैंक जैसे कुछ चुनिंदा बैंकों को छोड़कर सारे बैंक समय से पहले ऋण की पूरी अदायगी पर बकाया ऋण का दो फीसदी प्री-पेमेंट शुल्क लेते हैं।
सोमवार को रिजर्व बैंक द्वारा बैंकिंग ओम्बड्समैन या बैंकिंग लोकपाल सम्मेलन में कुल दस फैसले लिए गए है। इन सभी का ताल्लुक बैंकों की ग्राहक सेवाओं को बेहतर बनाना है। इसमें से फ्लोटिंग रेट लोन संबंधी फैसले में सम्मेलन का कहना है कि ऐसे ऋण में ब्याज दरों के उतार-चढ़ाव का जोखिम बैंक उधार लेनेवालों पर डाल देते हैं और खुद केवल उधार न लौटा पाने का जोखिम उठाते हैं, जबकि बैंक खुद ब्याज दर वायदा या स्वैप (आईआरएफ या आईआरएस) की व्यवस्था आ जाने के बाद ब्याज दर के बदलने के जोखिम को आसानी से संभाल सकते हैं। ऐसे में ग्राहक से प्री-पेमेंट शुल्क लेने का कोई औचित्य नहीं है।
सम्मेलन का यह भी सुझाव है कि बैंक लंबी अवधि के फिक्स्ड ब्याज दरों वाले होम लोन दे सकते हैं। दिक्कत यह है कि अभी न तो फ्लोटिंग रेट वाले लोन पर ब्याज दर पूरी तरह फ्लोटिंग होती है और न ही फिक्स्ड लोन पर पूरी तरह फिक्स्ड। कोई भी होन लोन ग्राहक इस बात की तस्दीक करेगा। सम्मेलन का कहना है कि अगर इस तरह की लंबी अवधि के तय ब्याज वाले ऋणों से बैंकों की आस्ति व देनदारी में असंतुलन (एएलएम) आता है तो वे इसे आईआरएस (ब्याज दर स्वैप) बाजार की मदद से ठीक कर सकते हैं। हां, वे नियत ब्याज वाले ऋणों पर वाजिब प्री-पेमेंट शुल्क या पेनाल्टी लेने को स्वतंत्र हैं।
इस सम्मेलन की अध्यक्षता रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर के सी चक्रबर्ती ने की, जबकि उद्घाटन गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव ने किया। इसमें देश भर के सभी 15 बैंकिंग लोकपालों, आईबीए के चेयरमैन व बैंक ऑफ बडौदा के सीएमडी एम डी माल्या और स्टेट बैंक के चेयरमैन प्रतीप चौधरी समेत बैंकिंग जगत के बहुत सारे अधिकारियों ने भाग लिया। सम्मेलन में सर्वसम्मति से दस सूत्रीय एक्शन प्लान स्वीकार किया गया, जिन पर सभी बैंकों से अमल करने की अपील की गई।
इनमें एक अहम बिंदु यह है कि अगर किसी भी एटीएम या नेट बैंकिंग सौदे में धन के लेन-देन का कोई विवाद होता है तो ग्राहक की लापरवाही या गलती साबित करने की जिम्मेदारी बैंक की होगी। बैंक को ग्राहक द्वारा अधिकृत न किए गए सौदे से होनेवाले नुकसान की भरपाई करनी होगी। एक अन्य फैसला यह है कि आईबीए और रिजर्व बैंक मिलकर विचार करेंगे कि ग्राहक को बैंक की सेवा से हुई मानसिक परेशानी की भरपाई कैसे की जा सकती है और इसका आधार क्या होगा।