बाज़ार के क्रैश होने का इंतज़ार बेमानी

जो बड़ा है, वो अच्छा हो, यह कतई ज़रूरी नहीं। यह जीवन से लेकर बिजनेस तक के लिए सच है। लेकिन बिजनेस का सच यह भी है कि जो अच्छी व शानदार कंपनियां हैं, वे ज़रूरी नहीं कि बड़ी कंपनियां हों। खासकर, भारत जैसे देश की हकीकत यह है कि यहां रोज़गार से लेकर निर्यात तक में सबसे बड़ा योगदान छोटी व औसत या मध्यम आकार की कंपनियों का है। निवेश के लिहाज़ से भी छोटी कंपनियां ज्यादा सही होती हैं क्योंकि उनमें बढ़ने की भरपूर गुंजाइश होती है और छोटी होने के नाते बहुतों की नज़र उन पर नहीं पड़ती तो उनके शेयर तेज़ी के बाज़ार में ज्यादा चढ़े नहीं होते। यह भी ध्यान रखें कि जिस तरह जीवन के उतार-चढ़ाव में हम जीना नहीं छोड़ते, उसी तरह शेयर बाज़ार के उतार-चढ़ाव में निवेश का सिलसिला या एसआईपी बनाए रखना चाहिए। दरअसल, निवेश के लिए बाज़ार के क्रैश होने का इंतज़ार करना ऐसे निठल्ले व अलहदी लोगों की सोच है जो मौका आने पर भी निवेश नहीं करते और इंतज़ार ही करते रह जाते हैं। अब तथास्तु में आज की कंपनी…

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