बैंकर से लेकर अर्थशास्त्री तक कहे जा रहे हैं कि रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की मध्य-तिमाही समीक्षा में ब्याज दरें बढ़ा देगा। खासकर फरवरी में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति के उम्मीद से ज्यादा 8.31 फीसदी रहने पर लगभग पक्का माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक नीतिगत दरों यानी रेपो और रिवर्स रेपो दर को 0.25 फीसदी बढ़ाकर क्रमशः 6.75 फीसदी और 5.75 फीसदी कर देगा। लेकिन सूत्रों के मुताबिक रिजर्व बैंक इस बार ऐसा कुछ नहीं करने जा रहा है।
चालू वित्त वर्ष में रिजर्व बैंक अब तक सात बार नीतिगत दरें बढ़ा चुका है। अगर खुदा न खास्ता 17 मार्च को भी उसने इन्हें बढ़ा दिया तो यह उसकी आठवीं वृद्धि होगी। रिजर्व बैंक गुरुवार, 17 मार्च को दोपहर 12 बजे अपनी बेवसाइट पर मौद्रिक नीति की मध्य-तिमाही समीक्षा पेश करेगा। सूत्रों का कहना है कि मुद्रास्फीति यकीनन चिंता का विषय है। लेकिन विकास पर भी ध्यान देना जरूरी है। जनवरी में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में 3.7 फीसदी की ही वृद्धि हुई है। यह पिछले तीन महीनों की सबसे अधिक विकास की दर है। फिर भी इस पर संतोष नहीं किया जा सकता।
रिजर्व बैंक आर्थिक विकास के मद्देनजर इस बार ब्याज दरें नहीं बढ़ाएगा। उसका मानना है कि फिलहाल उसने मार्च 2011 के लिए मुद्रास्फीति का लक्ष्य 7 फीसदी रखा है जो हासिल हो जाना चाहिए। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी भी यह भरोसा जता चुके हैं। यह दर जनवरी में 8.23 फीसदी थी, जबकि फरवरी में थोड़ा बढ़कर 8.31 फीसदी हो गई है। लेकिन इस दौरान खाद्य मुद्रास्फीति नीचे आ चुकी है। कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय दाम भी नीचे आ रहे हैं।
इसलिए मुद्रास्फीति का शोर ज्यादा है। वह तो नीचे आ ही जाएगी। हां, विकास को आंच नहीं आनी चाहिए। वैसे भी रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए मार्च 2010 के बाद से सात बार में रेपो दर को 1.75 फीसदी बढ़ाकर 6.5 फीसदी और रिवर्स रेपो दर को 2.25 फीसदी बढ़ाकर 5.5 फीसदी पर ला चुका है। रेपो दर पर रिजर्व बैंक बैंकों को धन उपलब्ध कराता है, जबकि रिवर्स रेपो दर से वह बैंकों की तरफ से जमा कराए गए अतिरिक्त धन पर ब्याज देता है।
बाजार के लोगों का कहना है कि अभी जिस तरह के हालात हैं, घोटालों का दौर खत्म नहीं हुआ है, पांच राज्यों में चुनाव होने हैं, विदेशी फंडों के भारत से निकलने की आशंका है, जापान दूसरे विश्व युद्ध के बाद से सबसे बड़े संकट में फंसा हुआ है, वैसे में रिजर्व बैंक ऐसा कुछ नहीं करेगा जिससे औद्योगिक विकास व निवेश पर नकारात्मक असर पड़े। ब्याज दरें बढ़ाने से बैंकों का ऋण प्रवाह धीमा पड़ सकता है और आर्थिक बहाली की प्रक्रिया मद्धिम पड़ सकती है।
वैसे, भी निजी क्षेत्र के बैंक अपनी सुविधा के अनुसार जमा और कर्ज पर ब्याज दर तो बढ़ा ही रहे हैं। अगर रिजर्व बैंक ने नीतिगत दरें जस की तस रखीं तो सरकारी बांडों पर यील्ड की दर 0.08 से 0.10 फीसदी (8 से 10 आधार अंक) बढ़ सकती है। यानी, बांड थोड़े सस्ते हो जाएंगे।
चलते-चलते एक और सूचना। रिजर्व बैंक भविष्य में रेपो दर को ही नीतिगत दर बनाने पर विचार कर रहा है। रिवर्स रेपो दर रेपो दर से एक फीसदी कम रखी जाएगी, जबकि बैंक दर रेपो दर से 0.50 फीसदी अधिक होगी। इस तरह बैंक दर और रिवर्स रेपो दर के बीच 1.50 फीसदी का कॉरिडोर होगा और इसे हमेशा बनाए रखा जाएगा। वैसे इस समय बैंक दर 6 फीसदी, रेपो दर 6.5 फीसदी और रिवर्स रेपो दर 5.5 फीसदी है। आगे यह गड्डमगड्ड नहीं चलेगी। रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति के परिचालन पर अपने डिप्टी गवर्नर दीपक मोहंती की अध्यक्षता में बने कार्यदल की रिपोर्ट आज ही चर्चा के लिए पेश की है, जिस पर इस माह के अंत यानी, 31 मार्च 2011 तक अपनी प्रतिक्रियाएं भेजी जा सकती हैं। इसे तफ्सील से पढ़ें और गुनें। फिर सभी को बताएं।