औद्योगिक मजदूरों का एकल मंच नहीं

देश में कुल श्रमिकों की संख्या करीब 40 करोड़ है। इसका 91% हिस्सा असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का है और केवल 3.5 करोड़ के आसपास मजदूर ही संगठित क्षेत्र में काम करते हैं। संगठित क्षेत्र के मजदूर भी विभिन्न राजनीतिक पार्टियों से जुड़ी करीब 15 ट्रेड यूनियनों में बंटे हैं। सरकार से बातचीत करने के लिए इनका कोई शीर्ष निकाय नहीं है, जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, न्यूजीलैंड, जापान और यहां तक कि पाकिस्तान में भी ट्रेड यूनियनों का एक शीर्ष मंच है जो कामगारों से जुड़े मसलों पर सरकार से सीधे वार्ता करता है।

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  1. देश में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक, जातीय, औद्योगिक, भौगोलिक आधार पर जान बूझ कर तोड़ा हुआ है। जिससे कि किसी भी दशा में ये सामंतवाद के खिलाफ मूँह खोलने लायक ना बचे, अपने लिए इज्जत से जी सकने के लिए कोई युक्ति संगत वितरण प्रणाली की माँग कर सके।

    जब कि सामंतों का कोई वर्ग नही होता आर्थिक हितों के लिए परस्पर विरोधी धर्मों के, राजनैतिक विचारधारा के, भौगोलिक क्षेत्र के, सामाजिक वर्ग के, जातीय वर्ग के, औद्योगिक घरों के सामंत समझौते ही नही करते, वैवाहिक सम्बन्ध बनाते हैं ताकि हर विपरीत धारा से भी पौषण पाते रहें।

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