अण्णा हज़ारे के नौ दिनों के अनशन ने कांग्रेस ही नहीं, सभी राजनीतिक पार्टियों की नींद हराम कर दी है। उन्होंने बुधवार को हुई सर्वदलीय बैठक में अण्णा से अनशन खत्म करने की अपील तो की है। लेकिन उन्हें न तो टीम अण्णा की शर्तें मंजूर हैं और न ही जन लोकपाल बिल। यही वजह है कि राजधानी दिल्ली में सात रेस कोर्स स्थित प्रधानमंत्री आवास पर हुई सभी दलों की बैठक बेनतीजा साबित हुई।
असल में कोई राजनीतिक दल अण्णा हज़ारे के पीछे उमड़े जन-समर्थन को पचा नहीं पा रहा है। इससे उन्हें अपने वजूद पर ही खतरा नजर आने लगा है। यही नहीं, वे भ्रष्टाचार और कालेधन जैसे राजनीतिक मुद्दों पर अण्णा हज़ारे व बाबा रामदेव के आंदोलन को साजिश करार देना चाहते हैं। कमाल की बात यह है कि ऐसा कुछ सत्ताधारी यूपीए गठबंधन नही, बल्कि विपक्ष में बैठा एनडीए गठबंधन कर रहा है।
प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने संयोजक और नीतीश की पार्टी जेडी-यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव बुधवार को लोकसभा में करीब एक घंटे के भाषण में यही समझाते रहे कि कैसे राजनीतिक दलों व संसद के खिलाफ एक साजिश चल रही है। उन्होंने कहा कि नेताओं को खलनायक बनाने का यह सिलसिला बीस साल पहले देश में आर्थिक उदारीकरण के आने के साथ 1991 में शुरू हुआ।
शरद यादव ने कहा कि संसद में ही सारे खुलासे होते हैं और उनके जैसे लोगों के खुलासे की वजह से ही 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन व राष्ट्रमंडल खेलों के घोटाले में ए राजा और सुरेश कलमाडी जैसे नेताओं को जेल हुई है। इस समय कुल 27 नेता जेल में हैं। लेकिन जब से बाबा रामदेव ने कालेधन के खिलाफ अनशन शुरू किया, कांग्रेस के पांच मंत्रियों ने जाकर एयरपोर्ट पर उनकी आरती उतारी, तभी से यह सब कुछ बंद है। कोई भ्रष्टाचारी अंदर नहीं गया है। उन्होंने कहा कि हम भी मजबूत लोकपाल बिल चाहते हैं। लेकिन अण्णा के आंदोलन से तो संसद ही बेमानी व अप्रासंगिक होने लगी है।
शरद यादव ने भ्रष्टाचार के सारे मुद्दे को जाति व्यवस्था से जोड़ दिया। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार का मुख्य स्रोत सदियों से भारत में चली आ रही जाति व्यवस्था है। इसे खत्म किए बगैर किसी कानून के जरिए भ्रष्टाचार को नहीं खत्म किया जा सकता। उन्होंने कहा, “वे कहते हैं कि लोकसभा के 153 सांसद अपराधी हैं। इनमें से एक मेरा भी नाम है। मुझ पर चोरी का इल्जाम है। लेकिन ऐसे पच्चीसों आरोप राजनीतिक आंदोलन करनेवालों पर लगाए जाते रहते हैं।” सरकार को यह सब कुछ दुरुस्त करना चाहिए।
उन्होंने अण्णा के आंदोलनकारियों द्वारा सांसदों के घेराव को सरासर गलत बताया। उनका कहना था कि संसद ही वह जगह है जहां देश की 80 फीसदी आबादी को प्रतिनिधित्व मिलता है। यहां पकौड़ी लाल भी चुनकर आ जाते हैं और घुरहू राम भी। न्यायपालिका, नौकरशाही या मीडियों में कहीं भी व्यापक अवाम को सही प्रतिनिधित्व नहीं मिलता। शूद्र-अतिशूद्र तो आजादी के 63 साल बाद भी सरकार में सचिव तक नहीं बन पाए हैं। बता दें कि अण्णा के आंदोलन को जातिवादी नजरिए से देखते हुए उस पर सवर्णों का प्रभुत्व होने का आरोप इंडियन जस्टिस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और दलित नेता उदित राज ने भी लगाया है।
शरद यादव ने भ्रष्टाचार को भारतीय परंपरा व सोच का हिस्सा करार दिया। उन्होंने कहा कि मन चंगा तो कठौती में गंगा के बजाय यहां घर चंगा तो कठौती में गंगा की सोच चलती है। जाहिर है कि इस सोच के साथ एनडीए के संयोजक को अण्णा का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन गलत ही लगना है। लेकिन इसके पीछे संसद या लोकतंत्र के खिलाफ साजिश देखने से सचमुच लगता है कि हमारे राजनीतिक दल वास्तविक धरातल से कितना ऊपर उड़ चुके हैं और इसलिए कितने ज्यादा अप्रासंगिक हो गए हैं।
शरद यादव मुंहफट हैं तो सब खुल कर कह दिया। लेकिन बीजेपी या लेफ्ट के नेता भी अण्णा के साथ उठे जन-उभार को लोकतंत्र के लिए खतरा बता रहे हैं। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी तक मानते हैं कि अन्ना का अनशन संसद की तौहीन करता है। अरुण जेटली ने भी जन लोकपाल बिल का विरोध किया है। सीपीएम के सीताराम येचुरी भी इसे पूरी तरह सही नहीं मानते।