मन कहता है भगत सिंह हों। बुद्धि कहती है कि मेरे घर नहीं, दूसरे के घर। बोल वचन में हम किसी से कम नहीं। लेकिन कर्म की अपेक्षा दूसरों से करते हैं। दूसरे नहीं करते तो दोष उनका। यूं ही कड़ी से कड़ी चलती जाती है और होता कुछ नहीं।
2012-06-08
मन कहता है भगत सिंह हों। बुद्धि कहती है कि मेरे घर नहीं, दूसरे के घर। बोल वचन में हम किसी से कम नहीं। लेकिन कर्म की अपेक्षा दूसरों से करते हैं। दूसरे नहीं करते तो दोष उनका। यूं ही कड़ी से कड़ी चलती जाती है और होता कुछ नहीं।
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