गमले में पौधे और बोनसाई ही उगते हैं, पेड़ नहीं। इसी तरह विचार व्यवहार की आंधियों में पलते हैं, बंद कोटरों में नहीं। दुनिया के झंझावातों में निखरते हैं, इतिहास के थपेड़ों से संवरते हैं विचार।
2011-02-13
गमले में पौधे और बोनसाई ही उगते हैं, पेड़ नहीं। इसी तरह विचार व्यवहार की आंधियों में पलते हैं, बंद कोटरों में नहीं। दुनिया के झंझावातों में निखरते हैं, इतिहास के थपेड़ों से संवरते हैं विचार।
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प्रिय बंधुवर अनिल रघुराज जी
अभिवादन !
बहुत सुंदर और सार्थक विचार है ।
बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
– राजेन्द्र स्वर्णकार