जिस तरह लोकतंत्र में हर शख्स को बराबर माना गया है, माना जाता है कि कानून व समाज की निगाह में हर कोई समान है, उसी तरह सुसंगत बाजार के लिए जरूरी है कि उसमें हर भागीदार बराबर की हैसियत से उतरे। यहां किसी का एकाधिकार नहीं चलता। इसलिए एकाधिकार के खिलाफ कायदे-कानून बने हुए हैं। लोकतंत्र और बाजार के बीच अभिन्न रिश्ता है। लेकिन अपने यहां लोकतंत्र और बाजार की क्या स्थिति है, हम अच्छी तरह जानते हैं। यहां जिस तरह कानून व समाज की निगाह में हर कोई समान नहीं है, उसी तरह बाजार का हर भागीदार अलग-अलग धरातल पर खड़ा है।
आप भी जानते हैं और मैं भी जानता हूं कि शेयरों के भाव सूचनाओं से प्रभावित होते हैं। लेकिन क्या नई सूचनाएं सभी लोगों तक समान रूप से पहुंच पाती हैं? एक इंटरनेट कंपनी के पूर्व सीईओ के मुताबिक, भारत में शेयर बाजार की ट्रेडिंग का तकरीबन 30 फीसदी हिस्सा इनसाइडर ट्रेडिंग से प्रभावित होता है। मोटे तौर पर इनसाइडर ट्रेडिंग का मतलब उन खबरों/सूचनाओं के आधार पर ट्रेडिंग करना है जो तब तक पब्लिक डोमेन में नहीं आई हैं। यानी, जिन खबरों को प्रकाशित नहीं किया गया है और जो स्टॉक एक्सचेंजों की बेवसाइट पर उपलब्ध नहीं हैं। इनसाइडर ट्रेडिंग दुनिया में हर जगह गैर-कानूनी है। रजत गुप्ता इसी के गुनहगार पाए गए हैं।
मैंने इसी शनिवार को एक वर्कशॉप के दौरान पूंजी बाजार नियामक, सेबी के कार्यकारी निदेशक एस एमन से निजी बातचीत में यह मुद्दा उठाया कि कंपनियां एनालिस्टों को तमाम ऐसी प्राइस सेंसिटिव जानकारियां उपलब्ध करा देती हैं, जो पब्लिक डोमेन में नहीं होतीं। एनालिस्ट उन जानकारियों को अपनी रिसर्च रिपोर्टों में जारी करते हैं जिसकी अच्छी-खासी कीमत होती है। कम से कम इतनी कीमत तो जरूर होती है जिसे आम निवेशक देने से हिचकिचाता है। ऐसे में क्या एनालिस्टों के साथ कंपनियों की मीटिंग के मिनट्स एक्सचेंज की साइट पर डालना जरूरी नहीं कर देना चाहिए? उन्होंने मेरे इस सुझाव को बड़े उत्साह से स्वीकार किया है। देखिए, आगे क्या होता है।
सवाल यही है कि सूचनाओं, जानकारियों और समझ के पैमाने पर जब तक आम और खास निवेशक समान धरातल पर नहीं आते, तब तक शेयर बाजार को सुसंगत बाजार कैसे माना या कहा जा सकता है? लेकिन दुनिया जैसी भी है, हमे जीवन की नैया तो उसी में खेनी है। बाजार जैसा है, उसी में कमाई की सूरत निकालनी है। बदलाव भी हमारी सक्रियता से होगा। कोई भी बाजार तब तक मजबूत नहीं हो सकता, जब तक उसमें आम लोगों की व्यापक भागीदारी नहीं होती। तमाम मॉल खुलते हैं, लोग नहीं जाते तो उन पर ताला लग जाता है।
शेयर बाजार में निवेश का एक अहम गुर है सही मौके पर वार। यहां समय की बड़ी अहमियत है। चूके तो बाजी हाथ से सरक जाती है। जैसे, मुझे शुक्रवार 16 नवंबर को गांधी स्पेशल ट्यूब्स के बारे में लिखना था। मैंने खुद ठोंक-बाजाकर देख लिया था कि यह कितनी संभावनामय कंपनी है। उससे एक दिन पहले 15 नवंबर को इसका शेयर बीएसई (कोड – 513108) में 139.35 रुपए पर बंद हुआ था। मैं आलस कर गया। सोचा कि सोमवार को आपको इसकी जानकारी दूंगा। फिर मामला टलता गया और मैंने पूरे हफ्ते नहीं लिखा। इस शुक्रवार देखा तो वही शेयर 172 रुपए तक जा चुका है। छह कारोबारी सत्रों में 23.4 फीसदी की बढ़त! ऐसा तो दो-ढाई साल में, जब से मैं यह कॉलम लिख रहा हूं, तब से एक बार भी नहीं हुआ है।
बड़ा अफसोस हुआ कि काश, आपको बता दिया होता! मुझे तो कुछ मिलना-मिलाना नहीं था। लेकिन इस सूचना से कम से कम आप में कुछ लोगों का तो फायदा हो गया होता। खैर, अब भी मौका पूरी तरह हाथ से नहीं गया है। बल्कि, सच कहूं तो शेयरों के भाव लहरदार ग्राफ की शक्ल में चलते हैं। ऊपर गए तो नीचे भी आते हैं। गांधी स्पेशल ट्यूब्स का शेयर शुक्रवार, 23 नवंबर को बीएसई में 170.20 रुपए और एनएसई (कोड – GANDHITUBE) में 172.05 रुपए पर बंद हुआ है। वित्तीय गणनाओं के आधार पर अगले चार से पांच साल में यह शेयर 260 रुपए तक जा सकता है। लेकिन अब इसे तभी खरीदना चाहिए, जब यह मौजूदा स्तर से नीचे उतरकर 140-150 रुपए के आसपास आ जाए।
असल में स्मॉल कैप स्टॉक्स के साथ बड़ी समस्या यह होती है कि ये बहुत तेजी से उछलते और उतने ही तेजी से गिरते भी हैं। इसी को वोलैटिलिटी कहते हैं। इसे किसी भी स्टॉक के स्टैंडर्ड डेविएशन या मानक विचलन से मापा जाता है। यही आंकड़ा स्टॉक से जुड़े जोखिम को भी दिखाता है। इसलिए हमारा सुझाव है कि गांधी स्पेशल ट्यूब्स में अब तभी हाथ लगाना ठीक रहेगा, जब वो छज्जे से नीचे उतर आए।
यहां विस्तार से बताने की गुंजाइश नहीं है। निवेश का मन हो तो आप खुद रिसर्च करके देख लीजिएगा। गांधी स्पेशल ट्यूब्स वेल्डेड व सीमलेस स्टील ट्यूब बनाती है। इसके साथ ही वह कई तरह के कंपोनेंट भी बनाती है। देश के वेल्डेड ट्यूब बाजार का तकरीबन 40 फीसदी हिस्सा उसके पास है। कंपनी की 7.35 करोड़ रुपए की इक्विटी का 73.27 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों ने अपने पास रखा हुआ है। यह कंपनी के प्रति उनके जुड़ाव और समर्पण का द्योतक है। गुजरात की यह कंपनी करीब तीन दशक पुरानी है। पिछले दस सालों में उसका इक्विटी पर औसत रिटर्न 22 फीसदी रहा है जो अपने प्रतिस्पर्धियों से काफी ज्यादा है। इसका शुद्ध लाभ मार्जिन (एनपीएम) 25.46 फीसदी है, जबकि दूसरों का पांच फीसदी से नीचे हैं। इसलिए हमें लगता है कि गांधी स्पेशल ट्यूब्स में कम से कम चार-पांच साल के लिए निवेश किया जा सकता है। बाकी, रिस्क से कोई कंपनी मुक्त नहीं होती। इस जोखिम को हिसाब-किताब लगा लेने के बाद ही आपको इस या किसी अन्य कंपनी में निवेश करना चाहिए। खासकर कंपनी अगर स्मॉल कैप हो तो ज्यादा ही सावधान रहना चाहिए।