यहां का रजत वहां निपट गया, यहां तो खेलते हैं न जाने कितने रजत

कभी सन्नामी अंतरराष्ट्रीय सलाहकार फर्म मैकेंजी के सरगना और गोल्डमैन सैक्श से लेकर प्रॉक्टर एंड गैम्बल व अमेरिकन एयरलाइंस जैसी बड़ी कंपनियों के निदेशक रह चुके अनिवासी भारतीय रजत गुप्ता की इज्जत का फालूदा बन चुका है। बुधवार को देर शाम अमेरिका की एक जिला अदालत ने उन्हें ‘धोखेबाज और बेईमान’ करार देते हुए दो साल की कैद और 50 लाख डॉलर जुर्माने की सज़ा सुना दी। फैसले के मुताबिक रजत गुप्ता की कैद 8 जनवरी 2013 से शुरू होगी। अमेरिका का जेल ब्यूरो तय करेगा कि उन्हें किस जेल में रखा जाएगा। हालांकि गुप्ता के वकील ने फरियाद की है कि उन्हें न्यूयॉर्क की ओटिसवेल जैसी न्यूनतम सिक्योरिटी वाली जेल में रखा जाए।

लंबी बहस के बाद साबित हो चुका है कि रजत गुप्ता इनसाइडर ट्रेडिंग में लिप्त रहे हैं। गुप्ता को अंदर की टिप्स देने संबंधी शेयर बाजार के तीन फ्रॉड और साजिश के एक मामले में दोषी पाया गया है। फैसला सुनाते वक्त न्यूयॉर्क जिला अदालत के जज जेड एस. रैकॉफ ने कहा कि 2008 के वित्तीय संकट के चरम पर कॉरपोरेट रहस्यों को गैरकानूनी तरीके से दूसरों को बताना गोल्डमैन सैक्श की पीठ में छुरा भोंकने जैसा कृत्य था। फिर भी उन्होंने गुप्ता के अच्छे रिकॉर्ड का उल्लेख करते हुए कहा, “मुझे लगता है और, सरकार भी इससे वास्तव में इनकार नहीं करेगी कि वे अच्छे इंसान हैं। लेकिन दुर्भाग्य से इस देश और दुनिया का इतिहास ऐसे उदाहरणों से पटा पड़ा है जब अच्छे इंसानों ने बुरे काम किए हैं।”

गुप्ता पर साबित दोषों में से एक यह है कि 23 सितंबर 2008 को गोल्डमैन सैक्श की बोर्ड मीटिंग से निकलने के तुरंत बाद उन्होंने गैलियॉन हेज फंड के संस्थापक और श्रीलंकाई मूल के अपने दोस्त राज राजारतनम को बता दिया था कि खरबपति निवेशक वॉरेन बफेट गोल्डमैन सैक्स में पांच अरब डॉलर का निवेश करने जा रहे हैं। उस वक्त बाजार बंद होने जा रहा था। राजारत्नम ने इस ‘अघोषित’ जानकारी के आधार पर आनन-फानन में ट्रेड करके लाखों डॉलर कमा डाले। राजारत्नम ऐसी हरकतों में दोषी पाए जाने के बाद पिछले साल मई से जेल में है। उसे कुल 11 साल जेल की सजा मिली है। रजत के खिलाफ अदालत में यह साबित नहीं हो सका कि अंदरूनी जानकारी देकर उन्होंने खुद कोई कमाई की है कि नहीं।

बुधवार को फैसला सुनाए जाने के वक्त रजत गुप्ता के साथ उनकी पत्नी और चार बेटियां भी अदालत में मौजूद थीं। फैसले के बाद गुप्ता का कहना था, “किशोरवय में ही अपने मां-बाप को खो देने के बाद पिछले 18 महीने मेरी ज़िंदगी के सबसे ज्यादा चुनौती भरे दिन रहे हैं। इसका मेरे परिवार, मेरे दोस्तों और तमाम उन संस्थाओं जो मुझे प्रिय रही हैं, पर जो असर पड़ा है, उसका मुझे भयंकर अफसोस है। मैंने वो प्रतिष्ठा गंवा दी है जो मैंने जीवन भर में कमाई थी। पहले साल भर तो मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह क्या हो रहा है। हालांकि मुकदमा शुरू होने के बाद मैंने अपने जीवन की नई गति स्वीकार कर ली।”

63 साल की उम्र में जाकर रजत गुप्ता का यह हश्र होगा, यह किसी ने भी दूर-दूर तक सोचा नहीं रहा होगा। रजत गुप्ता भारतीय मध्यवर्ग से निकले उस मेधावी छात्र की यात्रा का प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपनी प्रतिभा के दम पर कॉरपोरेट क्षेत्र में दनादन सफलता की सीढियां चढ़ता चला जाता है। रजत गुप्ता का जन्म 2 दिसंबर 1948 को कोलकाता के मानिकतल्ला मोहल्ले में हुआ था। उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार थे। उनकी मां एक मोंटेसरी स्कूल में पढ़ाती थीं। रजत जब पांच साल के थे तो उनका परिवार दिल्ली आ गया। उनके पिता ने हिंदुस्तान स्टैंडर्ड नाम का नया अखबार शुरू किया।

रजत दिल्ली में बाराखंभा रोड स्थित मॉडर्न स्कूल में पढ़ रहे थे। लेकिन जब वे सोलह साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया। दो साल बाद उनकी मां भी चल बसीं। इस तरह मां-बाप का साया सिर से उठने के बावजूद रजत पस्त नहीं हुए। पहले ही प्रयास में उन्होंने आईआईटी की परीक्षा में देश में 15वां स्थान हासिल किया और आईआईटी दिल्ली में मैकेनिकल इंजीनियर की पढ़ाई करने लगे। 1971 में इसे पूरा करते ही उन्हें सिगरेट कंपनी आईटीसी से नौकरी का ऑफर मिला। लेकिन उन्हें आगे पढ़ना था। वे वजीफे पर हार्वर्ड बिजनेस स्कूल (एचबीएस) से एमबीए करने चले गए। 1973 में उन्होंने एमबीए टॉप किया और उन्हें बेकर स्कॉलर का सम्मान मिला। फौरन उन्होंने मैकेंजी में नौकरी के लिए अर्जी लगाई। अनुभव न होने के कारण इसे खारिज कर दिया गया। लेकिन एचबीएस के प्रोफेसर रॉन डेनियल ने खुद मैकेंजी के प्रमुख से बात कर उनकी नौकरी लगवा दी। 21 साल बाद 1994 में रजत गुप्ता मैकेंजी के प्रबंध निदेशक बन गए। बाकी सब इतिहास है कि किस तरह उनका चालीस सालों का शानदार कैरियर एक साल में तबाह हो गया।

आज रजत गुप्ता फाइनेंशियल फ्रॉड के दोषी साबित हो चुके हैं। असल में जानकारों के मुताबिक अमेरिका में गोल्डमैन सैक्स, मेरिल लिंच, मॉरगन स्टैनले, सिटी बैंक व जेपी मॉरगन जैसी कंपनियों का सारा खेल निवेशकों को झांसा देने पर टिका हुआ है। पकड़े जाते हैं तो जुर्माना देकर रफा-दफा हो जाते हैं। जुलाई 2011 में जब जेपी मॉरगन पर म्युनिसिपलिटी बांड बाजार में धांधली करने का आरोप लगा तो वह 22.80 करोड़ डॉलर का जुर्माना देकर छूट गया। इनकी लूट से आंख मूंदनेवालों में दुनिया भर के दिग्गज उद्योगपति और नामी-गिरामी हस्तियां शामिल हैं।

रजत गुप्ता पर इनसाइडर ट्रेडिंग का आरोप साबित हो जाने के बावजूद दुनिया की 400 दिग्गज हस्तियों ने अमेरिकी जिला अदालत के जज रैकॉफ को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि रजत बड़े भले इंसान हैं, मानवसेवा का काम करते रहे हैं, दुनिया को एड्स/एचआईवी से मुक्त कराने की मुहिम में शामिल हैं, आदि-इत्यादि। इसलिए उन्हें छोड़ देना चाहिए या कम से कम सज़ा देनी चाहिए। यह पत्र लिखनेवालों में संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान, नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन और माइक्रोसॉफ्ट के मालिक बिल गेट्स तक शामिल हैं। बिल गेट्स ने लिखा था, “मैं नितांत निजी स्तर पर जानता हूं कि रजत गुप्ता दुनिया भर में गरीबों के हितों के कितने गंभीर प्रवक्ता हैं।” यहां तक कि रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रमुख मुकेश अंबानी ने भी गुप्ता की वकालत करते हुए कहा है, “वे कभी भी अपने नहीं, बल्कि हमेशा यही बात करते थे कि वे भारत के बारे में क्या करना चाहते हैं। मैं रजत के निःस्वार्थ समर्पण का आदर करता हूं।”

शायद ऐसी ही वकालतबाज़ी का असर है कि रजत को केवल दो साल कैद की सज़ा मिली। नहीं तो सरकारी वकील उन्हें आठ से दस साल की सज़ा दिलवाना चाहते थे। खैर, अब वो अध्याय खत्म हो चुका है। नोट करनेवाली बात यह है कि रजत के अपराध को साबित करने में अहम भूमिका अमेरिकी सरकार की तरफ से लड़ रहे अनिवासी भारतीय वकील प्रीत भरारा ने निभाई है और सत्यमेव जयते की भारतीय परंपरा का परचम ऊंचा रखा है। 42 साल के भरारा अब भी सामान्य नागरिक का जीवन जीते हैं। अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ न्यूयॉर्क के उपनगरीय इलाके में रहते हैं। वहीं रजत गुप्ता के पास वेस्टपोर्ट, कनेक्टीकट में सागर के किनारे कम से कम 90 लाख डॉलर (करीब 45 करोड़ रुपए) का निजी मकान है।

दुखद बात यह है कि रजत गुप्ता को वैसी ही सज़ा मिली है, जैसी किसी को भारत में शराब पीकर गाड़ी चलाने जैसे अपराध पर मिलती। फिर भी सुकून इस बात का है कि उन्हें सजा तो मिली। भारत होता तो ऐसे अपराध के बावजूद वे शशि थरूर की तरह केंद्रीय मंत्री बने रह सकते थे। अपने यहां तो शेयर बाजार में न जाने कितने रजत गुप्ता या उनके पिद्दी संस्करण हर दिन खेल करते रहते हैं। अपनी कंपनियों के शेयरों को चढ़ाने या गिराने में खुद प्रवर्तकों का हाथ रहता है। सेबी जैसे नियामक इतने पंगु हैं कि कुछ नहीं कर पाते। देश की सबसे बड़ी कंपनी के मुखिया के ड्राइवर ने दो साल पहले एक ट्रेडर को बताया था कि बड़े भाई अपनी कंपनी के शेयरों को 500 रुपए तक लाना चाहते हैं। उसी के बाद उस ट्रेडर ने इस कंपनी को हाथ लगाने से तौबा कर ली। ऐसे अपुष्ट किस्से हर दिन क्या, हर घंटे हमारे शेयर बाजार में टहलते रहते हैं। बाजार के जानकार लोगों के मुताबिक अपने यहां इनसाइडर ट्रेडिंग इतनी बढ़ चुकी है कि आम हो गई है। डर इतना है कि ऐसा कोई भी जानकार अपनी पहचान बताने से बचता है।

1 Comment

  1. अनिल जी बेहद शानदार लेख।

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