मालिक या नौकर

सरकार को माई-बाप और सरकारी अफसर को मालिक समझने की मानसिकता जब तक नहीं जाती, तब तक पांच के बजाय अगर हर साल चुनाव होने लग जाएं, तब भी देश में सच्चा लोकतंत्र नहीं आ सकता।

1 Comment

  1. मान्यवर

    बहुत सही फरमाया आपने …
    आवश्यकता है गुलाम मानसिकता को छोड़ने की ।

    ऐसे ही भाव मेरी ताज़ा रचना में भी हैं –

    मेरी ख़िदमत के लिए मैंने बनाया ख़ुद इसे
    घर का जबरन् बन गया मालिक ; जो चौकीदार है

    काग़जी था शेर कल , अब भेड़िया ख़ूंख़्वार है
    मेरी ग़लती का नतीज़ा ; ये मेरी सरकार है

    समय निकाल कर पूरी रचना पढ़ने आइएगा …

    हार्दिक मंगलकामनाओं सहित
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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