अजब तमाशा है ये ज्ञान की दुनिया। बाहर जाओ तो अंदर पहुंचते हो और अंदर पैठो तो बाहर का धुंधलका छंटने लगता है। शायद वही-वही संरचनाएं अंदर से बाहर तक थोड़े-बहुत अंतर के साथ फैली पड़ी हैं।
2011-11-28
अजब तमाशा है ये ज्ञान की दुनिया। बाहर जाओ तो अंदर पहुंचते हो और अंदर पैठो तो बाहर का धुंधलका छंटने लगता है। शायद वही-वही संरचनाएं अंदर से बाहर तक थोड़े-बहुत अंतर के साथ फैली पड़ी हैं।
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