गुजरात के सूरत जिले में सदियों से की जा रही जरी की कढ़ाई को भौगोलिक संकेत (ज्योग्राफिक इंडिकेशन या जीआई) का तमगा हासिल हो गया है जिससे इसे विशेष संरक्षण मिल गया है।
प्रमुख उद्योग संगठन फिक्की (पश्चिमी क्षेत्र) के एक सदस्य ने कहा, ‘‘चेन्नई स्थित भौगोलिक संकेत कार्यालय ने सूरत की जरी कढ़ाई को हाल ही में जीआई का दर्जा दिया है। इससे सूरत में जरी के काम से जुड़े डेढ़ लाख लोगों को अपने उत्पादों के लिए संरक्षण मिलेगा।’’ वस्तुओं के भौगोलिक संकेत से आशय उत्पाद के उत्पत्ति स्थल से है जो गुणवत्ता, प्रतिष्ठा और विशिष्टता को लेकर विशेष पहचान रखता है।
फेडरेशन ऑफ इंडियन आर्ट शिल्प वीविंग इंडस्ट्री एसोसिएशन के सदस्य अरुण जरीवाला का कहना है, ‘‘सूरत की जरी कला को जीआई का दर्जा मिलने से अन्य जगह के लोग इसकी नकल नहीं कर सकेंगे।’’ उन्होंने बताया कि यह सूरत के सबसे पुराने उद्योग में से एक है जो सोने व चांदी की कीमतों के बदलने से प्रभावित होता है क्योंकि सोने और चांदी से ही जरी के काम किए जाते हैं।’’ जरी के काम में सोने-चांदी और रेशम के तार व धागों से कढाई की जाती है। जरी के वस्त्र महंगे होते हैं लेकिन भारत और पाकिस्तान में काफी लोकप्रिय हैं।
