पिछले कुछ महीनों से उठे गुबार के बाद थोड़े-से भी जानकार निवेशकों में यूलिप (यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस पोडक्ट) को लेकर इतनी हिकारत पैदा हो गई है कि वे इसमें पैसा लगाना सरासर बेवकूफी समझते हैं। आम धारणा यही है कि बीमा लेना हो तो टर्म इंश्योरेस लेना चाहिए और निवेश का लाभ लेना हो तो सीधे म्यूचुअल फंड में पैसा लगाना चाहिए। इन दोनों के घालमेल यूलिप में पैसा लगाने का मतलब सिर्फ एजेंट की जेब भरना है। लेकिन बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए (इरडा) ने यूलिप के कायाकल्प का सिलसिला शुरू कर दिया है।
पहली बात कि यूलिप में लॉक-इन और प्रीमियम देने की न्यूनतम अवधि पांच साल कर दी गई है। पांच साल का प्रीमियम दे चुकने के बाद यूलिप में ग्रॉस यील्ड और नेट यील्ड का अंतर 4 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए जिसका सीधा असर एजेंट के कमीशन पर पड़ेगा। तय हुआ है कि पांच साल का पूरा का पूरा प्रीमियम निवेश करने पर जो फंड वैल्यू बनेगी, उसमें और कमीशन व तरह-तरह के शुल्क काट लेने के बाद बची रकम के निवेश की जो फंड वैल्यू होगी, उसका अंतर 4 फीसदी से अधिक नहीं हो सकता। अक्टूबर 2009 से इरडा ने तय कर रखा है कि ग्रॉस और नेट यील्ड का अंतर दस साल तक की यूलिप में 3 फीसदी और दस साल से अधिक की यूलिप में 2.25 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। लेकिन चूंकि यह पॉलिसी के पूरे टर्म की बात थी, इसलिए बीमा कंपनियां पॉलिसी के शुरुआती सालों में जमकर शुल्क काटती रहीं। वैसे भी ज्यादातर लोग खुद एजेंट की सलाह पर यूलिप में प्रीमियम देना तीन साल के बाद बंद कर देते रहे हैं। इसलिए इसमें पांच साल बाद से यील्ड के अंतर की शर्त जोड़ दी गई है।
अभी तक होता यह रहा है कि यूलिप में पहले साल प्रीमियम का 40 फीसदी और दूसरे साल 30 फीसदी हिस्सा काट लिया जाता रहा है। कभी-कभी तो पहले ही साल प्रीमियम का 70 फीसदी तक हिस्सा विभिन्न शुल्कों की भेंट चढ़ जाता था। नतीजतन 50,000 सालाना की दर से पांच में 2.50 लाख का प्रीमियम देने पर भी वास्तविक निवेश 2.10 लाख के आसपास होता था। इस पर कोई बीमा कंपनी 19 फीसदी रिटर्न दे, तब पॉलिसीधारक का निवेश उसके मूलधन के बराबर ही होता है। इतना रिटर्न देना तो म्यूचुअल फंड के लिए भी मुश्किल होता है। लेकिन 1 सितंबर 2010 से इरडा का नया नियम लागू हो जाने के बाद 2.50 लाख बहुत कम हुआ तो 2.40 लाख ही होगा।
हालांकि इरडा चाहता तो साफ-साफ तय कर सकता था कि किस साल के प्रीमियम का अधिकतम कितना हिस्सा प्रीमियम एलॉकेशन चार्ड, फंड मैनेजमेंट चार्ज और पॉलिसी एडमिनिस्ट्रेशन चार्ज में काटा जा सकता है। लेकिन उसने ग्रॉस यील्ड और नेट यील्ड में ऐसा उलझाया है कि अब भी बीमा कंपनियां खेल कर सकती हैं। एक बीमा विशेषज्ञ के मुताबिक नए नियम के बाद पहले साल में एजेंट का कमीशन 35-40 फीसदी से घटकर 10-15 फीसदी हो सकता है। अभी तक पहले पांच सालों में कुल प्रीमियम का 57.5 फीसदी हिस्सा एजेंट की जेब में जाता रहा है, जो अब घटकर 30-32 फीसदी पर आ सकता है।
एक खास बात और होने जा रही है कि अभी तक यूलिप में पहले साल के प्रीमियम का पांच गुना बीमा (मृत्यु) कवर दिया जाता है, लेकिन अब इसे कम से कम सालाना प्रीमियम का दस गुना कर दिया गया है। 45 साल या इससे ऊपर के लोगों के लिए यह 7 गुना होगा। एकल प्रीमियम वाली यूलिप में भी 45 साल के लोगों को 1.25 गुना और 45 साल या इससे ऊपर के लोगों को 1.10 गुना बीमा कवर देना होगा। जीवन बीमा कंपनी को पेंशन और एन्युटी के अलावा नियमित प्रीमियम वाली हर यूलिप पर न्यूनतम मृत्यु कवर या हेल्थ कवर देना होगा। यह हेल्थ कवर सालाना प्रीमियम का कम से कम पांच गुना होना चाहिए। न्यूनतम हेल्थ कवर 45 साल से कम उम्र में यूलिप लेनेवालों के लिए एक लाख और 45 साल या ऊपर के लिए 75,000 रुपए रखा गया है।
पेंशन और एन्युटी प्लान में अनिवार्य बीमा व हेल्थ कवर न रखना चौंकानेवाला है क्योंकि पहले कहा जा रहा था कि ऐसा किया जाएगा। लेकिन अब इसे राइडर के रूप में जोड़ दिया गया है। मतलब पेंशन या एऩ्युटी प्लान लेनेवाला अगर उसके साथ बीमा या हेल्थ कवर चाहता है तो उसे अतिरिक्त प्रीमियम देना होगा। हां, इस तरह के प्लान के लिए इरडा ने इतना जरूर तय कर दिया है कि इनके परिपक्व होने पर बीमा कंपनी को कम से कम 4.5 फीसदी सालाना रिटर्न की गारंटी देनी होगी। इसकी गणना हर साल इकट्ठा होते जा रहे प्रीमियम पर सालाना आधार पर की जाएगी। लेकिन इरडा ने बड़ी बारीकी से इसमें जोड़ दिया है ‘minimum guaranteed return of 4.5 per cent per annum or as specified by IRDA from time to time’ … मतलब साफ है कि अगर पेंशन प्लान के दौरान ब्याज दरें नीचे आ गईं तो इरडा गारंटीज ब्याज दर को घटा भी सकता है।
संलग्न: CIRCULAR_ULIP 28062010