आम निवेशक ज़रा-सा मौका मिलते ही म्यूचुअल फंडों की इक्विटी स्कीमों से तौबा कर ले रहे हैं। अभी बीते सितंबर महीने में उन्होंने इन इक्विटी स्कीमों से 3306 करोड़ रुपए निकाले हैं। यह जानकारी म्यूचुअल फंडों के साझा मंच, एम्फी की तरफ से जारी ताजा आंकड़ों में दी गई। ये आंकड़े तैयार तो शुक्रवार, 5 अक्टूबर को ही कर लिए गए थे। लेकिन जारी इन्हें सोमवार को किया गया। किसी भी एक महीने में म्यूचुअल फंडों की इक्विटी स्कीमों से पिछले दो साल में निकाली गई यह सबसे बड़ी रकम है।
जानकारों के मुताबिक इनमें से ज्यादातर निकासी उन रिटेल निवेशकों की तरफ से की गई है जिन्होंने चार-पांच साल पहले पहली बार बाजार की तेजी को देखते हुए इक्विटी स्कीमों में अपना धन लगाया था। लेकिन उसके बाद बाजार में जिस तरह का उतार-चढ़ाव आया और जिस तरह उनकी पूंजी डूबती-उतराती रही, वह उनके लिए बहुत कड़वा अनुभव रहा है। इसलिए इधर सितंबर में बाजार में जब थोड़ी तेजी की लहर उठी तो उन्होंने भागते भूत की लंगोटी समझकर अपना धन निकाल लेना ही बेहतर समझा।
म्यूचुअल फंड उद्योग पर निगाह रखनेवाली स्वतंत्र संस्था, वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार का कहना है, “सितंबर में हुआ विमोचन या रिडम्पशन मुख्यतया 2007-08 में आए नए फंड ऑफर्स (एनएफओ) से निकलने का आखिरी चरण है। उस वक्त बाजार के चढ़ाव को देखकर आए अधिकांश निवेशकों ने पहली बार इक्विटी स्कीमों का रुख किया था। लेकिन उन्हें भारी हताशा झेलनी पड़ी और अब जाकर वे अपने थोड़े-बहुत नुकसान की भरपाई कर पाए हैं।”
रिटेल निवेशकों की इस निकासी से निश्चित रूप से म्यूचुअल फंडों को चलानेवाली एसेट मैनेजमेंट कंपनियों के मुनाफे को चोट लगेगी। वैसे भी देश में सक्रिय 44 म्यूचुअल फंडों में से ज्यादातर ने अपनी ताजा सालाना रिपोर्ट में घाटा ही दिखाया है। एम्फी के आंकड़ों के मुताबिक सितंबर 2012 के अंत तक म्यूचुअल फंडों की कुल आस्तियां (एयूएम) 7,20,113 करोड़ रुपए की रही हैं। इसका सबसे बड़ा 69 फीसदी हिस्सा ऋण प्रपत्रों पर आधारित इनकम व लिक्विड/मनी मार्केट स्कीमों में लगा हुआ है, जबकि 23 फीसदी हिस्सा इक्विटी या ईएलएसएस (इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम) स्कीमों में। इससे साफ होता है कि म्यूचुअल फंड भी इक्विटी से दूर रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं और वे आम निवेशकों के बजाय कॉरपोरेट क्षेत्र का सहारा बने हुए हैं। हालांकि इसी कॉरपोरेट क्षेत्र के भरोसे उनका कुल एयूएम भी बढ़ रहा है। साल भर पहले सितंबर 2011 के अंत तक उनका एयूएम (आस्तियां) 6,41,937 करोड़ रुपए था। इस तरह साल भर में इसमें 12.2 फीसदी वृद्धि हुई है।
सच यह है कि जितना रिटर्न भारतीय शेयर बाजार दे रहा है, उतना रिटर्न दुनिया के कम बाजार ही दे पा रहे हैं। फिर भी म्यूचुअल अगर आम बचतकर्ता के बीच अपना भरोसा नहीं कायम कर पा रहे हैं तो यह उनके बिजनेस मॉडल, कामकाज की संस्कृति और सोच पर सवालिया निशान लगा देता है। हालांकि वे इसके लिए देश के नियमन तंत्र को दोषी बताकर पल्ला झाड़ लेते हैं। इस साल जनवरी से लेकर अब तक बीएसई सेंसेक्स करीब 22 फीसदी बढ़ चुका है। अगर म्यूचुअल फंड इसका लाभ आम निवेशकों तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं तो दुनिया भर के अनुभवों को देखते हुए आखिरकार उन्हें ही दोषी माना जाएगा। असल में एक-एक स्टॉक में निवेश करने में बहुत जोखिम होता है। लेकिन इन्हीं शेयरों का पोर्टफोलियो बनाकर निवेश किया जाए तो अलग-अलग कंपनियों के धंधे का खास जोखिम कटकर खत्म हो जाता है और पोर्टफोलियो को शेयर बाजार का आम जोखिम, जैसे मुद्रास्फीति, ब्याज की दर, मौद्रिक नीति, सरकारी नीतियां, आर्थिक व औद्योगिक विकास की स्थितियों का असर ही झेलना पड़ता है। यह फाइनेंस का ककहरा जाननेवाला भी बता सकता है।