भारत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के मामले में चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे आकर्षक गंतव्य बना हुआ है। जानीमी निवेश फर्म नोमुरा इंडिया ने कहा है कि देश में एफडीआई में जो गिरावट आई है, वह अस्थाई है और 2012 के शुरू में यहां विदेशी निवेश का स्तर एक बार फिर संकट से पहले की स्थिति में पहुंच जाएगा।
बीते वित्त वर्ष 2010-11 में अप्रैल से जनवरी के दौरान साल दर साल आधार पर भारत में एफडीआई का प्रवाह 25 फीसदी घटकर 17 अरब डॉलर रह गया है। जनवरी में तो एफडीआई 48 फीसदी घटकर 1.04 अरब डॉलर रह गया।
नोमुरा इंडिया की उपाध्यक्ष और अर्थशास्त्री सोनल वर्मा ने कहा है कि हाल में देश में एफडीआई में आई कमी की वजह वैश्विक है। वर्मा ने कहा, ‘‘2008 से 2010 के दौरान देश में एफडीआई का प्रवाह 12 अरब डॉलर घटा है। इसकी वजह यह है कि सेवा जैसे क्षेत्रों मसलन कंप्यूटर सॉफ्टवेयर व हार्डवेयर, वित्तीय सेवाओं, बैंकिंग और कंस्ट्रक्शन में विदेशी निवेश कम आया है।’’ उन्होंने कहा कि बैंकिंग और अन्य वित्तीय सेवाओं में प्रवाह में कमी आश्चर्यजनक नहीं है, क्योंकि संकट के बाद कंपनियां पुनर्गठन में जुटी हैं।
उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2010 में एफडीआई में इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़कर 24.7 फीसदी हो गई है। 2007 में यह आंकड़ा 17.3 फीसदी का था। वहीं इस दौरान मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की हिस्सेदारी 19.6 फीसदी से बढ़कर 32.1 फीसदी हो गई है।’’