यह उधार की दुनिया है। बेहद सस्ता उधार लेकर ग्लोबल पूंजी मुनाफे के माध्मय तलाशती हर तरफ सूंघती फिर रही है। व्यापार और पूंजी के प्रवाह में असंतुलन आ गया है। अर्थव्यवस्था का वित्तीयकरण हो चुका है। कोई सवाल नहीं उठते क्योंकि इससे सम्पन्नता व समृद्धि आ रही है। लेकिन वित्तीय पूंजी का यह दबदबा कितना घातक है, यह 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट दिखा चुका है। तभी से लीपापोती चल रही है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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