इस बाजार की बलिहारी है। 10 जून को आईएफसीआई ने सूचित किया कि तीन-तीन एजेंसियों – इक्रा, केयर व ब्रिकवर्क रेटिंग ने उसकी रेटिंग बढ़ा दी है। लेकिन इस अच्छी खबर के ठीक तेरह दिन बाद 23 जून को आईएफसीआई का शेयर 52 हफ्ते के न्यूनतम स्तर 42.55 रुपए पर पहुंच गया। महीने भर बाद अब भी उसी के आसपास डोल रहा है। शुक्रवार, 22 जुलाई को एनएसई (कोड – IFCI) में 46.85 रुपए और बीएसई (कोड – 500106) में 46.80 रुपए का बंद हुआ है।
आईएफसीआई देश में प्रोजेक्ट फाइनेंस, कॉरपोरेट सलाहकार व अन्य तमाम वित्तीय सेवाओं में सक्रिय देश की सबसे पुरानी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) में से एक है। आजादी के साल भर बाद 1948 में इसे भारत सरकार ने औद्योगिक क्षेत्र की मदद के लिए एक विकास-प्रेरक निगम के रूप में इंडस्ट्रियल फाइनेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (आईएफसीआई) के नाम से किया था। 1991 में उदारीकरण के बाद हालात बदले तो 1993 में इसे निगम से कंपनी बना दिया गया। 1999 में इसका नाम बदलकर आईएफसीआई लिमिटेड कर दिया गया।
इसके बाद वजूद में आई दो विकासप्रेरक सरकारी संस्थाएं आईसीआईसीआई और आईडीबीआई अलग बैंक का रूप लेकर कहां से कहां पहुंच गईं। लेकिन यह कई कारणों से वहीं की वहीं रह गई। इसके दिए गए ऋण फंस गए। एनपीए या समय पर न अदा किए जानेवाले ऋणों का बोझ बढ़ता गया और यह दबती चली गई। लेकिन अब वह सारा बोझ झटककर फिर से खड़ी हो गई है। सारा एनपीए लगभग खत्म हो चुका है। कुल ऋणों में इसका हिस्सा एक फीसदी से नीचे आ चुका है। जोखिम-भारित पूंजी पर्याप्तता अनुपात 20 फीसदी के बेहद सुरक्षित स्तर पर है। यानी, कंपनी जोखिम को नाथकर जमकर अपना धंधा बढ़ा सकती है।
आईएफसीआई चालू वित्त 2011-12 की जून तिमाही के नतीजे 28 जुलाई, गुरुवार को घोषित करेगी। देखिए क्या होता है। लेकिन मार्च में खत्म वित्त वर्ष 2010-11 में कंपनी ने जबरदस्त धंधा किया है। उसकी बैलेंस शीट 24,268 करोड़ रुपए की हो गई है जो 1948 में गठन के बाद से लेकर अब तक सबसे ज्यादा है। पिछले तीन सालों में यह 21 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ी है। उसकी नेटवर्थ 3761 करोड़ रुपए है। उसने इस दौरान कंसोलिडेट रूप से 2566.83 करोड़ रुपए की आय पर 745.53 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है।
फिलहाल कंसोलिडिटेड रूप से कंपनी का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 10.10 रुपए और स्टैंड-एलोन रूप से 9.57 रुपए है। हम स्टैंड-एलोन ईपीएस को पकड़े तो 46.80 रुपए के बाजार भाव पर उसका पी/अनुपात 4.89 निकलता है। कंपनी जिस उद्योग समूह से ताल्लुक रखती है, उसका पी/ई अनुपात 9.6 है। कंपनी की प्रति शेयर बुक वैल्यू 53.81 रुपए है। उसने 10 फीसदी लाभांश (दस रुपए अंकित मूल्य के शेयर पर एक रुपए) भी दिया है।
जाहिर है कि मौजूदा भावों पर आईएफसीआई का शेयर काफी वाजिब लग रहा है। साथ ही कंपनी में छिपा हुआ मूल्य अब निखर कर सामने आ रहा है। उसने तमाम लिस्टेड, अनलिस्टेड कंपनियों में भारी निवेश कर रखा है। दूसरे, मुंबई व दिल्ली में मौके की जगहों पर उसके पास 7.5 लाख वर्गफुट जमीन है। तीसरे, पिछले साल भर से इसे बैंकिंग लाइसेंस मिलने की चर्चा अब नतीजे पर पहुंचनेवाली है। असल में नए बैंकों को लाइसेंस देने संबंधी रिजर्व बैंक के ताजा दिशानिर्देशों के मुताबिक आईएफसीआई बैंकिंग लाइसेंस पानी की आदर्श उम्मीदवार है।
आपको याद होगा कि हमारे चक्री भाई ने आईएफसीआई के बारे में करीब साल भर पहले जमकर लिखा था। तब यह शेयर 45 से 50 रुपए की रेंज में था। इसके बाद 11 नवंबर 2010 को यह 80.55 रुपए तक चला गया जो पिछले 52 हफ्ते का इसका शिखर है। लेकिन फिर गिरा तो गिरता ही चला गया। हमारा अपना मानना है कि यह शेयर चंद महीनों के अंदर दोबारा 80 रुपए तक पहुंच सकता है। हालांकि निवेश इसमें लंबे समय के लिए ही किया जाना चाहिए तभी इसका भरपूर लाभ मिलेगा।
दिलचस्प बात है कि आईएफसीआई का कोई प्रवर्तक ही नहीं है। आईसीआईसीआई, एल एंड टी और आईटीसी की तरह यह प्रोफेशनल लोगों द्वारा चलाई जा रही कंपनी है। इसकी 737.84 करोड़ रुपए की इक्विटी में से सबसे ज्यादा 29.32 फीसदी शेयर घरेलू निवेशक संस्थाओं (डीआईआई) के पास हैं। उसके बाद 19.45 फीसदी के साथ एफआईआई हैं। हालांकि एफआईआई ने दिसंबर 2010 से लेकर जून 2011 के बीच कंपनी के शेयर निकाले हैं। दिसंबर 2010 में उनकी हिस्सेदारी 23.63 फीसदी थी, मार्च 2011 में 20.97 फीसदी हुई और जून 2011 में 19.45 फीसदी पर आ गई। शायद शेयर के तलहटी पर पहुंचने की खास वजह एफआईआई की बिकवाली ही हो। लेकिन इससे घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि एफआईआई के स्वार्थ और हम जैसे आम निवेशकों के स्वार्थ एक नहीं हो सकते। इसलिए हमारे निवेश का पैटर्न भी भिन्न होगा।
आईएफसीआई के शेयरधारकों की कुल संख्या 7,83,642 है। इनमें से 7,72,311 यानी 98.55 फीसदी शेयरधारक ऐसे हैं जिनका निवेश एक लाख रुपए से कम का है। इसके बड़े शेयरधारकों में एलआईसी (8.40 फीसदी), जीआईसी (2.17 फीसदी), एसबीआई (1.25 फीसदी), पंजाब नेशनल बैंक (1.23 फीसदी), न्यू इंडिया एश्योरेंस (1.16 फीसदी), क्रेडिट सुइस (1.15 फीसदी), रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड (2.02 फीसदी) और सिटीग्रुप ग्लोबल मार्केट्स – मॉरीशस (1.02 फीसदी) शामिल हैं।
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