पहले सीधे पत्र आते थे। फिर ई-मेल आने लगे और अब एसएमएस भी आ रहे हैं जो बताते हैं कि आपने फलां देश की फलां लॉटरी जीत ली है या किसी अरबपति ने अपनी सारी जायदाद आपके नाम कर दी है। आपने उनके झांसे में आकर हां कर दी तो प्रोसेसिंग फीस वगैरह लेने का सिलसिला शुरू होता है जिसमें बाकायदा रिजर्व बैंक के बड़े अधिकारियों तक का नाम व पता बताया जाता है, उनके लेटरहेड पर आपको कागजात भेजे जाते हैं। फिर, आपसे भारत के ही किसी बैंक में पैसा जमा कराने को कहा जाता है। लेकिन एक बार पैसे पा लेने के बाद धोखेबाज वो खाता बंद कराके चंपत हो लेते हैं। कई सालों से चल रहे इस तरह के फ्रॉड का दायरा अब इतना बढ़ गया है कि रिजर्व बैंक को बाकायदा सर्कुलर भेज कर बैंकों को हिदायत देनी पड़ी है कि वे अपने यहां ऐसे संदिग्ध खातों को न खुलने दें।
रिजर्व बैंक ने बुधवार को विदेशी मुद्रा के सभी अधिकृत डीलर कैटेगरी-1 बैंकों को भेजे सर्कुलर में कहा है कि इस समय बैंकों की तमाम शाखाओं ट्रांजैक्शन चार्ज, कनवर्जन चार्ज, प्रोसेसिंग या क्लिरिंग फीस जैसे नामों से पैसे जमा करवाने के लिए व्यक्तिगत या प्रोप्राइटी खाते खोले जा रहे हैं। बैंकों को हिदायत दी जाती है कि वे ऐसे खाते खोलते समय अतिरिक्त सावधानी व सर्तकता बरतें ताकि इनका दुरुपयोग फ्रॉड लोग न कर सकें। साथ ही रिजर्व बैंक ने स्पष्ट किया है कि कोई भी भारतीय अगर इस तरह का विदेशी धन प्राप्त करता है या प्रत्यक्ष/परोक्ष रूप से बाहर भेजता है वो वह फेमा कानून के तहत दंड का भागी है। बैंक भी इस मामले में केवाईसी (नो योर कस्मटमर) और एंटी मनी लॉन्ड्रिंग मानकों को तोड़ने के दोषी माने जाएंगे। बता दें कि अधिकृत डीलर कैटगरी-1 में लगभग सभी बैंक आ जाते हैं।
रिजर्व बैंक अभी तक इस मामले में प्रेस विज्ञप्तियां जारी कर काम चलाता रहा है। लेकिन फ्रॉड का सिलसिला न थमने की वजह से उसे नई पहल करनी पड़ी है। उसने अपने दो पुराने सर्कुलर का हवाला देते हुए बताया है कि लॉटरी स्कीमों में किसी भी तरह देश से बाहर रकम भेजना या प्राप्त करना विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानून, फेमा के तहत प्रतिबंधित है। यह नियम दूसरे नामों से चलाई जा रही लॉटरी जैसी सभी स्कीमों पर लागू होता है। इसमें ईनाम या जायदाद के नाम पर किया गया भुगतान भी शामिल है।
इसलिए आम लोगों के साथ ही बैंकों को अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरूरत है ताकि इस फ्रॉड को किसी भी सूरत में न होने दिया जाए। बैंकों की ढिलाई का ही फायदा उठाकर धोखेबाज आम लोगों को झांसा देकर उनके पैसे बाकायदा बैंक खातों में जमा करवाते हैं। इससे लोगों को कुछ हद तक उनके सही होने का भ्रम भी हो जाता है। ऐसे में बैंकों को इस तरह के फ्रॉड न होने देने की हरचंद कोशिश करनी पड़ेगी।