खाद्य मुद्रास्फीति के ऊंचे स्तर को धंधे के नए अवसर में तब्दील किया जा सकता है। यह कहना है दुनिया की जानीमानी सलाहकार फर्म केपीएमजी की ताजा रिपोर्ट का। राजधानी दिल्ली में मंगलवार को आयोजित नौवें ज्ञान शताब्दी सम्मेलन (नॉलेज मिलेमियम समिट) में पेश इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे कुछ कंपनियों ने खाद्य वस्तुओं को प्रभावित करनेवाली मांग-आपूर्ति की चुनौती को नवोन्मेष के जरिए बिजनेस का मौका बना लिया है।
इनके बिजनेस म़ॉडल से समस्या को कुछ हद तक सुलझाने में मदद भी मिली है। रिपोर्ट के मुताबिक, “व्यापक बाजार के संदर्भ में ऐसी केस स्टडी से निकले निष्कर्षों को कारगर व कुशल खाद्य श्रृंखला बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है।”
रिपोर्ट में कुछ बिजनेस मॉडलों का जिक्र भी किया गया है। जैसे, कोयम्बटूर की कंपनी सुगुना पोल्ट्री फार्म्स ने पोल्ट्री सेक्टर में फंडिंग की समस्या को कैसे दस राज्यों में 15,000 ग्रामीण उद्यमियों के जरिए सुलझा दिया। इसी तरह बैंगलोर की स्नोमैन फ्रोजेन फूड्स ने कोल्ड स्टोरेज की समस्या को नई टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से सुलझाया है। बता दें कि इस समय देश में स्टोरेज की सही सुविधाओं के अभाव में हर साल औसतन 35,000 करोड़ रुपए की फल-सब्जियां बरबाद हो जाती हैं।
केपीएमजी ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया है कि कैसे देश में भूमि की कम उत्पादकता व उपलब्धता की समस्या से परेशान 19 भारतीय कृषि कंपनियों ने विदेश में जाकर कृषि भूमि खरीदी है। वहीं जलगांव की कंपनी जैन इरिगेशन पानी व सिंचाई सुविधाओं के अभाव को देखते हुए छोटे पैमाने की सिंचाई प्रणाली को बढ़ावा दे रही है। गुजरात की कंपनी एन-मार्ट ने बिखरी-बिखरी सप्लाई चेन को जोड़ने का काम किया है।
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कृषि बिजनेस में 45,000 करोड़ डॉलर के धंधे की संभावना है। इस सेक्टर को कृषि क्षेत्र और उपभोक्ताओं के बीच की मजबूत कड़ी के रूप में विकसित किया जा सकता है। केपीएमजी ने इस हकीकत को रेखांकित किया है कि कैसे कृषि क्षेत्र में निवेश घट रहा है, उत्पादकता कम है, इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव है और टेक्नोलॉजी का उचित इस्तेमाल नहीं हो रहा है। ये मुख्य कारण हैं जो इस समय खाद्य मुद्रास्फीति 12.21 फीसदी पर पहुंच गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2010-11 में भारत में अच्छे मानसून व ज्यादा कृषि उत्पादन के बावजूद खाद्य मुद्रास्फीति काफी ऊंचे स्तर पर है। खाद्य वस्तुओं की महंगाई मांग व आपूर्ति के तमाम कारकों का या तो प्रत्यक्ष या परोक्ष परिणाम रही है।