खुद वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने अब स्वीकार कर लिया है कि पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार माल व सेवा कर (जीएसटी) को 1 अप्रैल 2011 से लागू करना संभव नहीं है। उन्होंने बुधवार को मुंबई में इनकम टैक्स, कस्टम्स व सेंट्रल एक्साइज के चीफ कमिश्नरों और कमिश्नरों की बैठक को संबोधित करते हुए कहा, “मैंने अपनी तरफ से जीएसटी के लिए संविधान संशोधन विधेयक को संसद के मानसून सत्र में लाने की हरसंभव कोशिश की। आप जानते ही है कि संविधान संशोधन को पूरा होने में निश्चित समय लगता है। संसद में पेश होने के बाद विधेयक स्थाई समिति में जाता है और फिर उसे दोनों सदनों से पारित कराने के लिए पेश करना पड़ता है।”
वित्त मंत्री ने कहा कि चूंकि हम जीएसटी विधेयक को संसद के पिछले सत्र में पेश नहीं कर सके, इसलिए इसे 1 अप्रैल 2011 से लागू करना संभव नहीं हो सकता। संविधान संशोधन हो जाने के बाद ही इसे केंद्र और राज्यों के स्तर पर आगे बढ़ाया जा सकता है। लेकिन उनका कहना है कि इसके बावजूद कर अधिकारियों को जीएसटी से जुड़े चल रहे काम व तैयारी में कोई ढील नहीं देनी चाहिए। वित्त मंत्रालय के अधिकारी जीएसटी के प्रशासनिक व नीतिगत पहलू से जुड़े तमाम मसलों पर काम कर रहे हैं। लेकिन इस पर कर अधिकारियों का फीडबैक मिलते रहना जरूरी है।
उन्होंने जानकारी दी कि 31 जुलाई 2010 तक प्रत्यक्ष कर संग्रह में 15.75 फीसदी वृद्धि हुई है। इसमें शुद्ध कॉरपोरेट टैक्स में 20.9 फीसदी और व्यक्तिगत इनकम टैक्स में 8.51 फीसदी बढ़त दर्ज की गई है। लेकिन मुंबई ज़ोन से प्रत्यक्ष कर संग्रह देश के औसत से कम रहा है। मुंबई में एडवांस टैक्स संग्रह चालू वित्त वर्ष 2010-11 में अब तक पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 22 फीसदी बढ़ा है। लेकिन इसी दौरान टीडीएस (स्रोत पर काटे गए टैक्स) में तकरीबन 2 फीसदी की कमी आई है। टीडीएस संग्रह में आई कमी के कारणों का विश्लेषण किया जाना चाहिए क्योंकि यह सरकार के खजाने का मुख्य राजस्व स्रोत है।
वित्त मंत्री का कहना था कि प्रत्यक्ष कर राजस्व में चिंता की मुख्य बात यह है कि 28,046 करोड़ रुपए सीआईटी (अपील) और 10,010 करोड़ रुपए आईटीएटी में फंसे पड़े हैं। आयकर विभाग को यह फंसा हुआ राजस्व निकलवाने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।