विदेशी पूंजी आने के तरीके व व्यापार घाटे ने वित्त मंत्री को चिंता में डाला

देश में जहां एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशक) निवेश बढ़ता जा रहा है, वहीं प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) घट रहा है। एफआईआई निवेश में एक तरह का उबाल आया हुआ है। लेकिन पिछले छह महीनों में एफडीआई घटकर लगभग आधा रह गया है। इस बीच हमारा व्यापार घाटा भी बढ़ रहा है। यूरो ज़ोन के संकट ने हमारे व्यापार संतुलन पर विपरीत असर डाला है। चिंता के ये सारे मसले खुद वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने उठाए हैं। अपने मंत्रालय से संबद्ध संसदीय सलाहकार समिति को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था निश्चित रूप से ऊंची विकास हासिल करने की राह पर है, लेकिन ऐसे कई पहलू हैं जो हमें चिंता में डाल देते हैं।

उन्होंने इस सिलसिले में एफआईआई निवेश के उबाल, एफडीआई में कमी, व्यापार घाटे के बढ़ने और यूरोप के संकट का खास तौर पर जिक्र किया है। बता दें कि इस कैलेंडर वर्ष में एफआईआई अब तक देश के पूंजी बाजार में 39 अरब डॉलर लगा चुके हैं। दूसरी तरफ अप्रैल से सितंबर 2010 के छह महीनों में देश में आए एफडीआई में 28 फीसदी की कमी आ चुकी है और यह 11 अरब डॉलर पर आ गया है।

सभी जानते हैं कि एफआईआई निवेश का स्वभाव शेयर बाजार से फायदा कमाकर फौरन उड़ जाने का होता है, जबकि एफडीआई की पूंजी लंबे समय के औद्योगिक विकास में लगती है। इसलिए कोई भी देश एफआईआई के बजाय एफडीआई को पसंद करता है। इन आंकड़ों से यह भी लगता है कि अधिकांश विदेशी पूंजी इंडिया ग्रोथ स्टोरी के लिए नहीं, बल्कि शेयर बाजार की तेजी का फायदा उठाने के लिए भारत में आ रही है।

वित्त मंत्री के लिए चिंता का दूसरा प्रमुख मसला है देश का बढ़ता व्यापार घाटा। चालू वित्त वर्ष 2010-11 में नवंबर तक पहले आठ महीनों में यह 81.7 अरब डॉलर रहा है जो इस दौरान हमारे कुल 140.3 अरब डॉलर के निर्यात के आधे से भी ज्यादा है। विश्लेषकों का मानना है कि अगर जिंसों के दाम बढते रहे तो भारत का व्यापार घाटा और भी विकराल हो सकता है।

बाहर से आ रही पूंजी को हटाकर विदेश से हो रही है हमारी अपनी कमाई का पैमाना है चालू खाता। अगर इस पर नजर डालें तो अप्रैल-जून 2010 की तिमाही में हमारा चालू खाते का घाटा 13.7 अरब डॉलर हो गया है जो साल भर पहले की इसकी अवधि की तुलना में लगभग तीन गुना है। यह घाटा इसलिए बढ़ा है क्योंकि देश में आर्थिक सुधार के चलते आयात बढ़े हैं, दूसरे बाहर से ली जानेवाली कुछ सेवाओं पर हमें ज्यादा भुगतान करना पड़ा है।

वित्त मंत्री ने बैठक में बताया कि सरकार ने मुद्रास्फीति को थामने के लिए कई वित्‍तीय व प्रशासानिक कदम उठाए हैं। इनके प्रभाव से अक्टूबर, 2010 में मुद्रास्‍फीति की दर 9.97 फीसदी पर इकाई अंक में आ गयी है। हालांकि खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति फिर बढ़ने की डगर पर है। वित्त मंत्री ने कहा कि बारिश सामान्‍य रहने के कारण खरीफ की फसल में दस फीसदी बढोतरी का अनुमान है और कपास व गन्‍ने की फसल में इससे ज्‍यादा की बढोतरी अनुमानित है।

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