भारत के खिलाफ 1971 के बाद पहली बार ऐसा हो रहा है कि पाकिस्तान को केंद्र में रखकर चीन और अमेरिका एक धुरी पर आ गए हैं, जबकि भारत को रूस के साथ अपने रिश्तों को बचाना पड़ रहा है। यह तीन दशकों से चली आ रही भारत की उस विदेश नीति की घनघोर पराजय है जिसमें पाकिस्तान व चीन के गठजोड़ के खिलाफ अमेरिका को सायास साथ रखा गया था। लेकिन इस हकीकत को समझने के बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अवाम को स्वदेशी का नारा देकर छका रहे हैं, जबकि पढ़े-लिखे लोगों की बात छोड़िए, भाजपा व मोदी के अंधभक्त भी इसे पचा नहीं पा रहे। सब जानते हैं कि मोदी का मेक-इन इंडिया स्वदेशी नहीं, बल्कि विदेशी कंपनियों को भारत में बनाकर बाहर निर्यात करने का न्यौता था। मोदी को अगर स्वदेशी व आत्मनिर्भरता से इतना ही लगाव है तो बताएं कि देश में दालों व खाद्य तेलों के आयात का नया रिकॉर्ड क्यों बनता जा रहा है। वित्त वर्ष 2024-25 में देश में 73 लाख टन दालों का रिकॉर्ड आयात हुआ है जिस पर 550 करोड़ डॉलर की विदेशी मुद्रा खर्च हुई। पिछला रिकॉर्ड 2016-17 में 420 करोड़ डॉलर में 66 लाख टन दालों के आयात का था। देश में खाद्य तेलों का आयात तो मोदी सरकार के 11 सालों में दोगुने से ज्यादा हो गया है। 2013-14 के 79 लाख टन से 2024-25 में 164 लाख टन। परनिर्भरता हो गई दोगुनी। अब मंगलवार की दृष्टि…
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