वोट या निवेश, परखें कथनी नहीं करनी!

वित्त वर्ष 2023-24 की मार्च तिमाही के कॉरपोरेट नतीजे और 18वीं लोकसभा चुनावों का प्रचार अब अंतिम दौर में है। जिस तरह कंपनी प्रबंधन वर्तमान की कमियां छिपाकर भविष्य की संभावनाओं के बड़े-बड़े दावे करता है, उसी तरह राजनीतिक पार्टी का नेता अपनी उपलब्धियों से लेकर भावी योजनाओं के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करता है। कंपनियां प्रेस कॉन्फ्रेंस लेकर विज्ञप्तियों तक निकालती हैं तो राजनीतिक पार्टियां घोषणा-पत्र लाती हैं और नेता आमसभाएं व रैलियां तक करते हैं। लेकिन न तो समझदार निवेशक को कंपनी प्रबंधन के दावो में फंसना चाहिए और न ही मतदाता को नेताओं की घोषणा व वादों में। दोनों ही मामलों में कथनी नहीं, करनी को परखा जाना चाहिए। नारी शक्ति वंदन अधिनियम कथनी है, जबकि पहलवान बेटियों की आवाज़ अनसुनी कर उनके उत्पीड़क का संरक्षण करनी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस महज बात है, जबकि दूसरी पार्टियों के भ्रष्टाचारियों को साथ लाना कर्म है। कंपनी प्रबंधन बड़ी-बड़ी बातें करे, लेकिन प्रवर्तक कंपनी में अपनी शेयरधारिता घटाते रहें तो यह धोखा है। खुद प्रवर्तक अपनी कंपनी में हिस्सेदारी बढ़ाते जाएं, तभी निवेशक को उस पर यकीन करना चाहिए। अब तथास्तु में आज की कंपनी…

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