किसी समय शेयर बाज़ार को अर्थवयवस्था का बैरोमीटर माना जाता था। लेकिन क्या आज ऐसा नहीं है। हमारा शेयर बाज़ार इस समय ऐतिहासिक ऊंचाई के इर्दगिर्द घूम रहा है। लेकिन अर्थव्यवस्था की हालत नवंबर 2016 की नोटबंदी के बाद जो बिगड़ी और कोरोना महामारी से जैसा उसे तहस-नहस किया गया, उसके बाद उमंग नहीं लौट पा रही। टैक्स संग्रह ज़रूर बढ़ रहा है। लेकिन सरकार के फालतू खर्च ज्यादा रफ्तार से बढ़ रहे हैं। इन खर्चों को नहीं संभालने से केंद्र के राजकोष का घाटा बढ़ता जा रहा है। ऐसी ही वजहों के चलते विश्व बैंक का ताज़ा अनुमान है कि वित्त वर्ष 2022-23 में हमारा जीडीपी बहुत हुआ तो 6.9% ही बढ़ पाएगा, जबकि पिछले वित्त वर्ष 2021-22 में यह 8.7% बढ़ा था। अब बुधवार की बुद्धि…
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