भारत का मध्य वर्ग पिछले दस साल से मोदी सरकार और भाजपा का समर्थक रहा है क्योंकि उसे लगता था कि वो आर्थिक विकास को गति देकर रोज़ी-रोज़गार व समृद्धि के अवसर पैदा करेगी। लेकिन अब उसे लगने लगा है कि मोदी सरकार इसके बजाय अपने मुठ्ठी भर यारों पर देश के संसाधन लुटा रही है, जबकि मध्य वर्ग की हालत खस्ता है और उसे अपनी गाढ़ी कमाई पर लगातार ज्यादा से ज्यादा टैक्स देना पड़ रहा है। लोकसभा चुनावों में मध्य वर्ग की इस नाराज़गी का ही असर था कि भाजपा बहुमत से नीचे 240 सीटों तक सिमट गई। जम्मू-कश्मीर के समीकरण अलग हैं। लेकिन हरियाणा से लेकर महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों में भाजपा को मध्य वर्ग के गुस्से की कीमत चुकानी पड़ सकती है। मध्य वर्ग में जो सालाना 30 लाख रुपए से ज्यादा कमानेवाले अमीर लोग हैं, उनकी भी मोदी और भाजपा से दूरी बढ़ रही है। वित्त वर्ष 2020-21 में ऐसे परिवारों की अनुमानित संख्या 1.07 करोड़ थी जिनमें कुल 5.6 करोड़ व्यक्ति थे। गौरतलब है कि इन अमीरों का तीन-चौथाई हिस्सा मात्र आठ राज्यों – महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, गुजरात, दिल्ली, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल व पंजाब में है। इनमें केवल गुजरात में भाजपा मजबूत है, जबकि महाराष्ट्र व उत्तर प्रदेश में उसकी हालत डांवाडोल है। बाकी पांच राज्यों में मजबूत विपक्ष की सरकारें हैं और भाजपा कमोबेश साफ है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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