महंगाई की दर ज्यादा भ्रामक न हो जाए!
अगर मोदी सरकार ने अपने मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन की सलाह मान ली तो देश की मौद्रिक नीति बनाते वक्त खाने-पीने की चीजों की महंगाई को किनारे कर दिया जाएगा। यह 145 करोड़ आबादी वाले उस महादेश में होगा जो ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) के पैमाने पर दुनिया के 125 देशों में 111वे नंबर पर है, जहां भूख गंभीर समस्या है और जहां के 81.35 करोड़ लोग हर महीने सरकार से मिलने वाले पांच किलोऔरऔर भी
अनंत नागेश्वरन का ज्ञान है अजब-गजब!
वी. अनंत नागेश्वरन ढाई साल से मौजूदा भारत सरकार या मोदी सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार है, भारत के नहीं। अगर भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार होते तो कभी ऐसी बात नहीं कहते कि, “भारत में सालाना एक लाख रुपए से कम कमानेवाले परिवारों के युवाओं की मानसिक सेहत बेहतर है जो नियमित व्यायाम करते हैं, परिवार में घनिष्ठता है और कभी-कभार ही अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड खाते हैं, बनिस्बत उन युवाओं से जिनकी सालाना पारिवारिक आय 10 लाखऔरऔर भी
आईपीओ के बुलबुलों से सतर्क-सावधान
पिछले कई सालों से भारतीय निवेशकों के लिए बुलबुलों का दौर चल रहा है। पहले क्रिप्टो करेंसी। इसके बाद स्मॉल-कैप स्टॉक्स पर दांव लगाने का जुनून। फिर रेलवे से लेकर डिफेंस क्षेत्र तक की सरकारी कंपनियों ने गदर काटा। अब निवेशकों में आईपीओ का उन्माद। असल में जब भी शेयर बाज़ार तेज़ी पर होता है तो माहौल को भुनाने के लिए कंपनियां चीलों और मर्चेंट बैंकर उनके सेनानी कौओं की तरह नादान निवेशकों के झुंड पर टूटऔरऔर भी
बाज़ार हवाले नहीं कर सकते हेल्थकेयर
हेल्थकेयर को कभी भी बाज़ार शक्तियों के हवाले नहीं किया जा सकता क्योंकि वो बाजार के नियमों से नहीं चलता। उसमें अनिश्चितता व विपत्ति के पहलू हैं। उसे हमदर्दी व सम्वेदना के बिना कतई नहीं चलाया जा सकता। यह भी गौरतलब है कि भारत में हेल्थकेयर एक ऐसा क्षेत्र है जहां रेग्युलेशन न के बराबर है। कोई भी कहीं भी अस्पताल या नर्सिंग होम खोल सकता है और किसी की कोई जवाबदेही नहीं। यही वजह है किऔरऔर भी