भारतीय शेयर बाजार की तेज़ी सारी दुनिया के निवेशकों को खींचे पड़ी है। सभी यहां निवेश करने को लालायित हैं। लेकिन सवाल उठता है कि हमारे बाज़ार की तेज़ी का सत्व क्या है और हवाबाज़ी कितनी है? पहली बात निफ्टी-50 में बैकिंग व वित्तीय सेवाओं का भार सबसे ज्यादा 33.95% है। इस तरह इसका 1/3 से ज्यादा हिस्सा वास्तविक अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व नहीं करता, जिसमें मैन्यूफैक्चरिंग से लेकर कृषि, व्यापार व आईटी जैसी अन्य सेवाएं शामिल हैं।औरऔर भी

कंपनियों की बैलेंसशीट में हमेशा आस्तियों और देनदारियों का अलग-अलग जोड़ बराबर होता है। इसी तरह किसी देश के जीडीपी की गणना करते वक्त उत्पादन या आय को कुल व्यय के बराबर होना चाहिए। सिद्धांत कहता है कि अर्थव्यवस्था में अर्जित आय को खर्च के बराबर होना चाहिए क्योंकि उत्पादक व सेवाप्रदाता की आय तभी होती है, जबकि दूसरा उसके उत्पाद व सेवाएं खरीदता है। भारत में जीडीपी की गणना के लिए आय या उत्पादन का तरीकाऔरऔर भी

मार्क मोबियस से लेकर मॉर्गन स्टैनले और नोमुरा सिक्यूरिटीज़ तक ‘इंडिया स्टोरी’ के हरकारे हैं और इसकी मुनादी पीटकर आम भारतीयों की बचत पर हाथ साफ करते हैं। उन्हें पता है कि सच्चाई सामने पर आम भारतीयों को ही अंजाम भुगतना पड़ेगा। इस वक्त असलियत को संगठित व सरकारी स्तर पर छिपाकर कैसे गलत जानकारी दी जा रही है, एक बानगी। चालू वित्त वर्ष 2023-24 की जून तिमाही में जीडीपी की सतह पर दिखनेवाली या नॉमिनल विकासऔरऔर भी

शेयर बाज़ार हकीकत पर नहीं, बल्कि फिज़ा पर चलता है। खासकर, ट्रेडिंग में तो सदा-सर्वदा हवाबाज़ी ही चलती है। इसीलिए पिछले कुछ सालों से बाज़ार नई से नई चोटी पर पहुंचता जा रहा है। इस माहौल की सरगर्मी बढ़ाकर इफरात धनवाले अपनी दौलत बढ़ाते रहते हैं। दरअसल, शेयर बाज़ार बहुत-बहुत धन रखनेवालों का खेल है जैसे पोलो व इक्वेस्ट्रियन। वे आपस में खेलते हैं। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय का कोई भेद नहीं। एफआईआई हों या डीआईआई, ये केवलऔरऔर भी