शेयर बाज़ार हकीकत पर नहीं, बल्कि फिज़ा पर चलता है। खासकर, ट्रेडिंग में तो सदा-सर्वदा हवाबाज़ी ही चलती है। इसीलिए पिछले कुछ सालों से बाज़ार नई से नई चोटी पर पहुंचता जा रहा है। इस माहौल की सरगर्मी बढ़ाकर इफरात धनवाले अपनी दौलत बढ़ाते रहते हैं। दरअसल, शेयर बाज़ार बहुत-बहुत धन रखनेवालों का खेल है जैसे पोलो व इक्वेस्ट्रियन। वे आपस में खेलते हैं। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय का कोई भेद नहीं। एफआईआई हों या डीआईआई, ये केवल पैसे के यार होते हैं, किसी के सगे नहीं। गंजेड़ी यार किसके, दम लगाके खिसके। विदेशी निवेशकों को नहीं मतलब कि अर्थव्यवस्था सचमुच बढ़ रही है या यहा सब कुछ जुमलेबाज़ी व झूठ की महिमा है। सच्चाई जब सामने आती हैं, उससे पहले ही एफआईआई और डीआईआई निकल चुके होते हैं। पहले एकाध हर्षद मेहता या केतन पारेख होते थे। अब तो इनकी तादाद हज़ारों में है और वे बड़े संगठित हैं। यहां तक कि भारतीय उस्तादों का काला व बेनामी धन भी एफआईआई के ज़रिए बेरोकटोक भारतीय बाज़ार में आता जा रहा है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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