आपको याद होगा कि सरकार ने कुछ महीने पहले टैक्स कटौती से कॉरपोरेट क्षेत्र को 1.45 लाख करोड़ रुपए का तोहफा दिया था। लेकिन आप नहीं जानते कि केंद्र सरकार ने निजी व सरकारी कंपनियों और मनरेगा जैसी सामाजिक स्कीमों व राज्य सरकारों का लगभग 3 लाख करोड़ रुपए का बकाया दबा रखा है। वो यह बकाया चुका देती तो अर्थव्यवस्था में जान आ जाती। लेकिन वह तो एलआईसी से कमाना चाहती है। अब शुक्रवार का अभ्यास…औरऔर भी

कमज़ोर अर्थव्यस्था का असर केंद्र के टैक्स-संग्रह पर दिख रहा है। चालू वित्त वर्ष 2019-120 में उसका निवल टैक्स-संग्रह लक्ष्य से 1.13 लाख करोड़ रुपए कम है। इसलिए नए वित्त वर्ष का लक्ष्य पूरा होना मुश्किल है। शायद इसीलिए वित्तमंत्री ने सरकारी कंपनियां बेचकर 2.1 लाख करोड़ रुपए हासिल करने का मंसूबा बांधा है, जबकि चालू वित्त वर्ष के 1.05 लाख करोड़ के लक्ष्य में अब तक मात्र 18,094 करोड़ जुटे हैं। अब गुरु की दशा-दिशा…और भीऔर भी

आर्थिक विकास में घरेलू बचत का बड़ा योगदान है। लेकिन बजट में इसकी उपेक्षा की गई। जीडीपी को 8% बढ़ना है तो घरेलू बचत को इसका चार गुना, जीडीपी का 32% होना चाहिए। लेकिन यह 2012 के 36% से घटकर 30% से नीचे आ चुकी है। इसमें भी हाउसहोल्ड बचत दर 23% से 17% पर आ गई है। इसकी भरपाई विदेशी बचत करती है जिससे देश का चालू खाते का घाटा बढ़ता है। अब बुधवार की बुद्धि…और भीऔर भी

अर्थनीति मे राजनीति घुस जाए तो अर्थव्यवस्था का बेड़ा गरक होने लगता है। इस बार बजट में यही हुआ है। इसमें प्रभावशाली लॉबियों को प्रसन्न किया गया है। कॉरपोरेट क्षेत्र को पहले ही टैक्स में भारी रियायत दी जा चुकी थी। उसकी मांग थी कि लाभांश वितरण पर उसे टैक्स के झंझट से मुक्त कर दिया जाए तो यह झंझट आम निवेशकों पर डाल दिया गया। ये कदम अर्थव्यवस्था को उबार नहीं सकते। अब मगलवार की दृष्टि…और भीऔर भी

अर्थजगत का सबसे बड़ा सालाना सरकारी अनुष्ठान सम्पन्न हो गया। लेकिन शनिवार को आए नए वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में सुस्ती से घिरी अर्थव्यवस्था को उबारने का कोई सार्थक कदम नहीं उठाया गया। न उपभोक्ता मांग बढ़ाने के उपाय किए गए, न ही औद्योगिक निवेश बढ़ाने का प्रयास हुआ। ऊपर से कर-प्रणाली को उलझा दिया गया। निवेशकों पर लाभांश टैक्स देने का झंझट थोप दिया गया। आगे की राह बड़ी कठिन है। अब सोम का व्योम…औरऔर भी